$12.06
Genre
Print Length
112 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2013
ISBN
9789381063750
Weight
360 Gram
असम का प्राचीन नाम कामरूप है| शंकर द्वारा अभिशप्त कामदेव ने यहाँ नया रूप पाया था, अतः इस प्रदेश का नाम हुआ कामरूप| किंवदंती के अनुसार कामरूप की स्त्रियाँ सौंदर्य के जादू से पुरुषों को भेड़ा बनाकर रखा करती थीं| दिल्ली में बसी रानू कामरूप की है| वह अपने आकर्षक परिधान और मोहक भाव-भंगिमाओं से पुरुषों को बुद्धू बनाकर अपना उल्लू सीधा किया करती है| मर्यादाओं में पले संस्कारी अमित पर भी वह डोरे डालती है| दोनों के बीच घात-प्रतिघात चलते रहते हैं| इनका सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण उपन्यास में हुआ है| सद्गृहस्थ अमित नारी के मांसल सौंदर्य में नहीं, आंतरिक सौंदर्य में विश्वास रखता है|
उपन्यास में असम की सेक्स-पगी रक्त-रंजित गूढ़ धर्म-साधनाओं का परिचय मिलेगा| वहाँ के बिहू उत्सव, रिहा-मेखला परिधान, प्राकृतिक सौंदर्य, कामाख्या-हाजो-केदारेश्वर मंदिरों की उपासना-पद्धति की झाँकी भी दिखेगी| पाठक उपन्यास के पात्रों के साथ चित्रकूट के वनप्रदेश और खुजराहो के मंदिर-समूह की यात्रा करता चलेगा| कृति में समाहित प्रीति-प्रसंग पाठकों का मन गुदगुदा जाएँगे| अमित स्वयं कामरूप की यात्रा कर पाता है कि वहाँ की सही और सुशील महिलाएँ तो और ही हैं, रानू उनका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती| असम में धर्मांतरण और बांग्लादेशियों की घुसपैठ की गंभीर समस्याओं का संकेत भी इस कृति में है| यह निश्चय ही एक पठनीय पुस्तक है|
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