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Vatan Par Marnewale (वतन पर मर्नेवाले)

Price: $ 10.00

Condition: New

Isbn: 9789380839004

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Novels and Short Stories,Memoir and Biography,History,

Publishing Date / Year: 2013

No of Pages: 176

Weight: 330 Gram

Total Price: $ 10.00

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दोनों क्रांतिकारी तुरंत अपने शिकार को पहचान गए | शाम को साढ़े पाँच बजे तक जिला परिषद् की मीटिंग की कार्यवाही नियमित रूप से चलती रही | एजेंडे के नौवें बिंदु पर विचार शुरू हुआ | डगलस जिला परिषद् के कागजों पर हस्ताक्षर कर रहा था और अपनी सम्मति भी देता जा रहा था कि अचानक सभाभवन गोली चलने की दहशत- भरी आवाज से गूँज उठा | सभी सदस्य एकदम सकते में आ गए | उन्होंने देखा, दो युवक डगलस के पीछे की तरफ दाएँ-बाएँ खड़े गोली चला रहे थे | गोली चलानेवाले तथा डगलस की दूरी एक-डेढ़ गज से ज्यादा नहीं थी | उनकी हर गोली छूटने की आवाज होती और वह डगलस की गाड़ी पीठ में घुस जाती | कोट के ऊपर एक नया लाल छेद बन जाता | पहली गोली पर वह हलके से चीखा, जिसमें दर्द और पुकार दोनों थी | फिर वह कुछ उठने की कोशिश करता रहा, जो दूसरी गोली तक जारी थी | तीसरी गोली तक स्थिर रहा | पाँचवीं गोली लगने के बाद वह मेज पर मुँह के बल गिरकर निढाल पड़ गया | उसकी वह चीख चार गोलियों तक धीमी होती गई और पाँचवीं गोली तक लगता था, वह होशोहवास खो चुका था | प्रभांशु की पाँचों गोलियाँ उसे छेदकर घुस गई थीं | प्रद्योत ने एक गोली चलाई, जो चली, मगर लगी नहीं | उसकी पिस्तौल अब जाम हो गई थी | जैसे राजगुरु की पिस्तौल सांडर्स को मारने के लिए पहली गोली चलाने के बाद जाम हो गई थी | -इसी पुस्तक से