$11.99
Genre
Print Length
195 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8188266256
Weight
355 Gram
कश्मीर, मैं तुम्हारी सफलता पर बहुत प्रसन्न हूँ| तुम एक योग्य अफसर हो और मैं चाहता हूँ, तुम बँगलादेश के अपने सैनिक अनुभव, अपने सुझाव और टिप्पणियाँ लिखकर मुझे प्रस्तुत करो|”
“राइट सर! वह मैं सहर्ष कर दूँगा| परंतु सर, इसमें एक बाधा है|” वह बोला|
“वह क्या है?”
“मेरे सुझाव कुछ उच्चाधिकारियों के विरुद्ध होंगे|” कश्मीर ने कहा|
“ब्रिगेडियर तुम्हारा उचित मूल्यांकन नहीं कर सका था|”
“सर, मेरा मूल्यांकन उनके और आपके विचार का विषय है| इसमें मैं कुछ नहीं कह सकता|” “हाँ, परंतु मैंने उसे अवगत करा दिया था|” कोर कमांडर ने संकेत से कह दिया| कश्मीर समझ चुका था कि उसका उच्चाधिकारी मन-वचन से समान आचरण नहीं कर पाया है| आज प्रथम बार उसे यह भास हुआ कि सेना का एक उच्चाधिकारी किस प्रकार अपनी अयोग्यता को छुपाने का प्रयत्न करता है| यदि युद्धकालीन स्थिति न होती, सभी ओर से निश्चित तिथि से पूर्व कार्य को समाप्त करने के कठोर आदेश न होते तो उसे अपनी सूझ-बूझ को प्रदर्शित करने का समय नहीं मिलता| उस अभाव में वह अपने उच्चाधिकारी की ईर्ष्या का ग्रास बन जाता है| आज उसे प्रथम बार अनुभव हुआ कि छल-कपट सेना की वरदी पहनकर भी हो सकता है| -इसी उपन्यास से स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद जिस तीव्रता से हमारे जीवन-मूल्य विघटित हुए हैं उसी तीव्रता से सेना में अनुशासन की कठोरता में भी कमी आई है| सैन्य सेवा की पृष्ठभूमि पर रोचक शैली में लिखित प्रस्तुत उपन्यास ‘लांछन’ अद्वितीय विषय प्रस्तुत कर रहा है, जो अपनी हृदयस्पर्शिता और मार्मिकता के कारण पठनीय बन पड़ा है|
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