$7.78
Genre
Print Length
100 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8188140864
Weight
225 Gram
यह तो वही है-सुधा
 “वह अभी तक बैठी ही हुई है?” थानेदार ने पूछा|
 “कौन, वह पगली?”
 “सुनो, वह पागल नहीं है|” थानेदार गंभीर होकर बोला|
 “बिलकुल सिरफिरी है| उसका दिमाग एकदम खिसका हुआ है|”
 “जानते हो, परसों से ही उसने कुछ खाया नहीं है|”
 “खाने को कुछ दे-दिलाकर भगाना चाहिए इस आफत को|”
 “वह भीख लेगी?”
 “देंगे, तो क्यों नहीं लेगी?”
 “कहती है कि बड़े बाप की बेटी है, ससुर भी नामी श्रेष्ठी था|”
 “तो यह क्यों मारी-मारी फिर रही है?”
 “अपने पति के बारे में पूछती फिर रही है|”
 “तो बता दीजिए उसे कि...कुछ कहकर टाल दीजिए|”
 “मैं कहूँ? क्यों? और तुम किस काम के लिए हो?”
 “सर, आपका कहना ही ठीक होगा|”
 “यह मेरा काम नहीं है|”
 “तो मुझमें भी इतनी हिंमत नहीं है कि उससे झूठ बोलूँ|”
 “एक औरत से झूठ नहीं बोल सकते? किस बूते पर सिपाही की नौकरी करने आए हो? उँह...झूठ नहीं बोल सकते तो किसी आश्रम में चले जाओ!” थानेदार कुढ़कर बोला|
 -इसी पुस्तक से इससे बढ़कर दु:ख की बात क्या हो सकती है कि हजारों वर्षों से जड़ जमाकर बैठी अंधी और अपराध-मित्र न्याय-व्यवस्था अभी भी ज्यों-की-त्यों बनी हुई है| भारतीय सामाजिक एवं न्याय व्यवस्था पर करारी चोट करता हुआ प्रभावशाली उपन्यास यह तो वही है|
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