$7.78
Genre
Print Length
151 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8188139629
Weight
300 Gram
बूढ़ा अपने अतीत में खोई हुई वर्तमान से कट गई थीं | न उनका अतीत वर्तमान में अँट रहा था और न वर्तमान उन्हें छू पा रहा था | उनके सामने जो यथार्थ था, उसे वे अपनी यातना का नरक समझ रही थीं | जो बीते हुए दिन थे, वे झिलमिल स्वप्न- लोक की तरह सिर्फ उन्हें भरमा रहे थे | उनके मन में न अतीत की सच्चाई थी और न वर्तमान की | दोनों उलट-पुलट गए थे |
' बूढ़ा ' शब्द तिरष्कार से लबालब भरा था | जो काम करने में असमर्थ हो, पराश्रित हो, धन रहते हुए भी उसके भोग की शक्ति न हो, किसी समाज में बैठने के लायक भी न हो, जिसे लड़के तक धकेलकर बाहर कर दें-वह है बूढ़ा |
एक ओर पति की श्रद्धा की गंगा है, दूसरी ओर संतानों के स्नेह की यमुना | दो पाटों के बीच जिंदगी बालू हो गई है | उस पर जितना चल सकती हूँ चलूँगी | हार नहीं मानूँगी |
बातो तिल-तिल जलकर बुझने के पहले धधा रही थी | रोशनी भी चटक थी और धुआँ भी तेज था | बुझते हुए दीये की रोशनी में वे घर-परिवार को असीसती थीं और धुएँ की कलौंछ में जलती- भुनती बातें कह जाती थीं | बुझते हुए दीये के कंपन में नीचे आशीर्वाद की रोशनी थी और ऊपर कटूक्तियों की कालिख थी |
-इसी उपन्यास से
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