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Genre
Print Length
111 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9789380823607
Weight
225 Gram
कृष्ण कुमारजी विश्व भर में फैले हुए भारतवंशीय समुदाय के एक अभिन्न अंग हैं, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी| वे हिंदी के प्रति निष्ठावान हैं और इसके प्रचार-प्रसार की अनेक गतिविधियाँ संचालित करते हैं| हिंदी जगत् ने उनके साहित्यकार मन और कवि मन की अनुभूतियों की ध्वनियाँ सुनीं| आश्चर्य भी हुआ कि विज्ञान शास्त्र का यह व्यक्ति इतना 'भावुक-मन’ भी हो सकता है|
गद्य और पद्य के संगम ने इन्हें कवि बना दिया और संवेदनशील मन से कविता का निर्झर बहने लगा| 'नर्तन करते शब्द’ कविता संग्रह एवं अन्य संग्रह इसका प्रमाण हैं|
'नर्तन करते शब्द’ शीर्षक जितना सुंदर है, कविताएँ भी उतनी ही सुंदर, सहज, परत-दर-परत नैतिक मूल्यों को उकेरती हुई, तो कभी गूढ़ अर्थों से ओतप्रोत होकर बहती हुईं|
उन्होंने स्वयं स्वीकारा है कि उनके बंधु-बांधव उन्हें अध्यात्म, दर्शन, जीवन-मरण, पौराणिकता से ओतप्रोत नैतिक मूल्यों के संरक्षक एवं भारतीयता को समॢपत कवि के रूप में देखने लगे हैं|
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