Utho! Jago! Aage Badho (उठो! जागो! आगे बढ़ो)

By Sandipkumar Salunkhe (संदीपकुमार सालुंखे)

Utho! Jago! Aage Badho (उठो! जागो! आगे बढ़ो)

By Sandipkumar Salunkhe (संदीपकुमार सालुंखे)

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Specifications

Print Length

168 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2010

ISBN

9789389982022

Weight

280 Gram

Description

हमारी आत्मा में ऐसी कई सूक्ष्म आवाजें बसती हैं जो अमूर्त हैं और जिन्हें शब्दों में अभिव्यक्‍त कर पाना असंभव सा है| उन्हें हम स्वयं अनुभूत करते हैं| ये अनमोल किताबें 'उस’ आवाज को सुनने की क्षमता रखती हैं| जिस प्रकार से प्रकृति में समाई एक अनजान शक्‍ति ही बीज को अंकुरित होने में, पेड़ बनने में, फलने-फूलने में सदैव प्रेरित करती है, ठीक उसी तरह हमारी अंतरात्मा में भी एक अनजान प्रेरणा बसती है, जो हमारे 'स्व’ रूप के सम्यक् ज्ञान की प्राप्‍ति की ओर, जीवन के सही अर्थ को खोजने की दिशा में प्रेरित करती है|
जीवन सफर के पहले दौर में हम बाहरी जगत् में आदर्श को खोजने में लग जाते हैं| हम संघर्ष करते हैं| बार-बार गिरते हैं और क्षत भी होते रहते हैं| फिर साहस से उठते हैं और संघर्ष के साथ-साथ आगे बढ़ते हैं| हमारे अंदर समाई क्रांति के सफर में यह संघर्ष महत्त्वपूर्ण है| अनिवार्य भी है| अंत में इच्छित क्रांतिकारी पल हमारे जीवन में अवश्य आता है| जीवन को पूर्णतया बदल डालने की ताकत शब्दों में होती है| सारी निराशा को, आलस्य को दूर करने की क्षमता उनमें होती है| तमाम अवगुणों को जलाकर, भस्म कर, अंतर्मन की शक्‍ति को जाग्रत् करने की शक्‍ति, क्षमता शब्दों में होती है| अत: 'उठो, जागो और ध्येयसिद्धी की राह पर अविरत चलते रहो| जब तक ध्येय प्राप्‍त न हो, रुको मत|’


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