By Laxminiwas Jhunjhunwala (लक्ष्मीवास झुनझुनवाला), Shankari Prasad Basu (शंकरी प्रसाद बसु)
By Laxminiwas Jhunjhunwala (लक्ष्मीवास झुनझुनवाला), Shankari Prasad Basu (शंकरी प्रसाद बसु)
$20.53
Genre
Print Length
389 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
9789350488911
Weight
590 Gram
इसके बाद यह प्रस्ताव पारित किया गया- ‘‘यहाँ बहुधा यह कहा गया और मैं भी यह कहता रहा हूँ कि हम लोगों ने विगत सत्रह दिनों में जैसा आयोजन देखा है ऐसा अब इस पीढ़ी को तो उनके जीवनकाल में पुनः देखने का अवसर नहीं प्राप्त होगा; पर जिस प्रकार के उत्साह व शक्ति का संचार इस सम्मेलन ने किया है, लोग दूसरे धर्म-सम्मेलन के स्वप्न देखने लगे हैं, जो इससे भी अधिक भव्य व लोकप्रिय होगा| मैंने अपनी बुद्धि लगाई है कि अगले धर्म-सम्मेलन के लिए उचित स्थान कौन सा हो| जब मैं अपने अत्यंत नम्र जापानी भाइयों को देखता हूँ तो मेरा मन कहता है कि पैसिफिक महासागर की शांति में स्थित टोकियो शहर में अगला धर्म-सम्मेलन किया जाए, पर मैं आधे रास्ते रुकने की बजाय सोचता हूँ कि अंग्रेजी शासन के अधीन भारतवर्ष में यह सम्मेलन हो| पहले मैंने बंबई शहर के लिए सोचा, फिर सोचा कि कलकत्ता अधिक उपयुक्त रहेगा, पर फिर मेरा मन गंगा के तट की प्राचीन नगरी वाराणसी पर जाकर स्थिर हो गया, ताकि भारत के सबसे अधिक पवित्र स्थल पर ही हम मिलें|
‘‘अब यह भव्य सम्मेलन कब होगा? हम आज यह निश्चय कर विदा ले रहे हैं कि बीसवीं सदी में अगला भव्य सम्मेलन वाराणसी में होगा तथा इसकी अध्यक्षता भी जॉन हेनरी बरोज ही करेंगे|’’
-इसी पुस्तक से
इस पुस्तक में एक फ्रांसीसी नर्तकी एमा काल्वे पर स्वामी विवेकानंद के प्रभाव की चर्चा है| इस अभिनेत्री ने कठोर संघर्ष कर नृत्य-नाटिका के क्षेत्र में विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया| अपार संपत्ति कमाई तथा बेहिसाब खर्च भी किया| एक सुंदर महल खरीदा| एकमात्र पुत्री शिकागो में जलकर मर गई, जब वह प्रेक्षागार में नृत्य कर रही थी| काल्वे यह आघात सहन न कर पाई, उसने आत्महत्या का असफल प्रयास किया| ऐसे घोर संकट के समय भारी अपराध-बोध से ग्रस्त वह स्वामी विवेकानंद से मिली| उन्होंने उसे शांति दी| उसे कर्मपथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी| वह स्वामीजी की भक्त बन गई| काल्वे पुनः अपने नृत्य-क्षेत्र में लौट आई| विश्व-भ्रमण किया| अमेरिका, हवाना आदि
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