$11.78
Genre
Print Length
216 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8173150435
Weight
340 Gram
हमारे देश का प्राचीन चिंतन तथा प्राचीन संस्कृति अत्यंत प्रगतिशील एवं समृद्ध रही है | हमारे देश में अनेक चिंतक, साधक-संत तथा महापुरुष हुए | उन सभी ने अपने युग को गहराई से देखा, समझा और फिर एक अच्छे भविष्य के लिए अपनी बातें कहीं | इन सभी के चिंतन के मूल में एक स्वच्छ एवं समतावादी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की भावना थी | यह बात अलग है कि धर्मप्राण समाज ने उन चिंतनों को एक धार्मिक-विधि के रूप में लिया | बाद में इन चिंतनों में धीरे- धीरे विकार आने लगता | समाज धर्म के मूल से हटकर भटकने लगता | ऐसे समय में फिर किसी चिंतक या संत का उदय होता और इस तरह एक नए पंथ की स्थापना हो जाती | इस प्रकार भारत नए-नए विचारों से समृद्ध होता गया | लेकिन इन विभिन्न विचारों के केंद्र में हमेशा एक बात रही- ' 'एकैव मानुषि जाति |’’ - इसी पुस्तक से
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