$22.38
Genre
Print Length
320 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2014
ISBN
9789386300058
Weight
570 Gram
न गोपी, न राधा ' डॉ. राजेंद्रमोहन भटनागर का अप्रनिम उपन्यास हें | मीरा न गोपी थी, न राधा | वह मीरा ही थी | अपने आपमें मीरा होने का जो अर्थ- सौभाग्य है, वह न गोपियों को मिला था और न राधा को | वह अर्थ-सौभाग्य क्या था, यही इस उपन्यास का मर्म है |
इसी मर्म की जिज्ञासा ने डॉ. भटनागर को मसि पर तीन उपन्यास लिखने की प्रेरणा दी-' पयस्विनी मीरा ', ' श्यामप्रिया ' और ' प्रेमदीवानी ' | अचरज यह है कि ये सभी उपन्यास एक-दूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं- कथ्य, चरित्र और भाषा -शैली में | इनमें यह उपन्याम तो इन सबसे मूलत : भिन्न है | इसमें मीरा का चरित्र एक वीर क्षत्राणी का है और भक्तिन- समर्पिता का | विद्रोह में समर्पण की सादगी यहाँ, द्रष्टव्य है |
पहली बार मीरा का द्वारिका पड़ाव जीवंत हुआ है | पहली बार मीरा का प्रस्तुतिकरण उनके पदों, लोक-कथाओं, बहियों आदि के माध्यम से सामने आया है | पहली बार मीरा का मेवाड़ी, मारवाड़ी, व्रज, गुजराती और राजस्थानी भाषिक बोली संस्कार मुखर हुआ हैं-नाहिं, नहिं, नाँय, कछु, कछू आदि को अपने में समेटे हुए | पहली बार मीरा को मीरा होने का यहाँ मौलिक अधिकार है |
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