$7.78
Print Length
112 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9789351867302
Weight
250 Gram
जलियाँवाला बाग में हुआ नर-संहार इतिहास का अटूट अंग है| उस दिन हजारों निःशस्त्र भारतीयों का नृशंस रक्तपात हुआ| उसके बाद मार्शल लॉ आरोपित हुआ| यदि जलियाँवाला बाग कांड फाँसी के सदृश था तो उसके बाद का अध्याय कालापानी से कम नहीं था| वह कुकांड भारत के आधुनिक इतिहास का एक ऐसा प्रकरण है, जिसे सरलता से भुलाया नहीं जा सकता, भूलना भी नहीं चाहिए| कालापानी की तरह इसकी याद भी हमारी एक दुखनेवाली नस को निरंतर दबाती है| जलियाँवाला बाग नर-संहार तो एक विरला ही दुःख है| यद्यपि इस विषय पर अंग्रेजी में थोड़ा-बहुत लिखा गया है; परंतु हिंदी व प्रांतीय भाषाओं के लेखकों का ध्यान इस कांड से संबद्ध प्रकरणों अथवा उनके विवेचन की ओर शायद ही गया हो| किंतु हिंदी में पहली बार यह काम किया गया है| अंग्रेजों ने इस नर-संहार की घटना पर परदा डालने के जी-तोड़ प्रयत्न किए| और इसमें वे पूर्णतया असफल भी नहीं रहे| कालांतर में जो थोड़ा-बहुत लिखा गया, वह अंग्रेजी कलम से था| कई तथ्यों का पता स्वतंत्रता के दशकों पश्चात् लगा| उन्हीं तथ्यों को इस पुस्तक में समग्रता के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है| पाठकगण इसमें दी गई अनेक उत्पीड़क एवं रोमांचकारी घटनाओं तथा विवरणों को चाव से पढ़कर उनमें निहित मर्म को विचारोत्पादक पाएँगे|
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