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Genre
Print Length
138 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9788173151033
Weight
300 Gram
कुछ दिनों में आप लोग भी बाहर जाएँगे| बाहर जाएँगे, और जैसा कि आप लोग कहा करते हैं, इस पृथ्वी पर स्वर्ग बसाने की कोशिश करेंगे| पृथ्वी पर स्वर्ग! कितनी सुंदर कल्पना! यह सपना सत्य हो|
पर क्या आप लोगों के उस पृथ्वी के स्वर्ग में भी पतित रहेंगे, बाबू?...
जहाँ पतित हों, जहाँ पतितों का देश हो-क्या उसे स्वर्ग के नाम से अभिहित किया जा सकता है?
जहाँ कल्लू हो, जमादार हो; जहाँ बेंत की तिकठी हो, फाँसी का तख्ता हो-वह स्वर्ग तो हो नहीं सकता| ये तो पृथ्वी के ही कलंक हैं, स्वर्ग की तो बात अलग|
स्वर्ग बना सकें, बसा सकें-फिर क्या कहना! किंतु मैं कहूँ, यदि पृथ्वी से इन कलंकों को दूर कर दें, तो यह आदमियों के रहने लायक तो हो ही जाए|
देवता हम पीछे बनेंगे, पहले हम पूरे आदमी बन लें!
-इसी उपन्यास से
स्वतंत्रता-पूर्व की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विसंगतियाँ क्या-क्या थीं एवं मातृभूम के लिए प्राण न्योछावर करनेवाले सपूतों के इस देश को स्वर्ग बनाने के सपने क्या थे-बहुत ही मामर्क कथा के माध्यम से भावुकता प्रधान शैली में चित्रित किया है लेखक ने| उन शहीदों के सपनों के स्वर्ग में आज भी कहीं पतित तो नहीं हैं? बेनीपुरीजी की प्रसिद्ध रचना ‘पतितों के देश में’ इस ओर हमारा ध्यान आज और भी अधिक खींचती है|
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