$15.66
Genre
Print Length
302 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2014
ISBN
9789380186856
Weight
390 Gram
किसी महान् संतान के आविर्भाव से पूरा वंश पवित्र हो जाता है, जननी कृतार्थ हो उठती है, वसुंधरा पुण्यवती हो आती है-यह वाणी परम सत्य वाणी है| उस पुण्य-संचय से यह पृथ्वी ढेरों पाप वहन करने के बावजूद सही-सलामत है|मातृभक्त संतान की सर्वत्र जय निश्चित है| किसी भी महान् जीवन की बुनियाद खोजें, तो जड़ों में मातृभक्ति की निर्मल खाद साफ-साफ नजर आती है|इस पुस्तक में यथाक्रम दस मातृकाओं की कथा है-(1) आद्या माँ (2) गर्भधारिणी माँ, (3) रांगा माँ, (4) अम्मीजान, (5) मम्मी (मिसेज फिलिप्स), (6) माताजी, (7) बूढ़ी माँ, (8) तड़िया की माई, (9) शोभा माँ और (10) रूपाली माँ!बेटी की उम्र की ये ‘माताएँ’ शक्तिरूपिणी होती हैं| इसलिए वे महिलाएँ अविचल महिमा से अपने इस बड़े बच्चे को अगोरती रहती हैं, जैसे अम्मी माँ बीमार बच्चे की पल-पल रखवाली करती है| उनका ध्यान-ज्ञान-जीवन उस बच्चे की सेवा होती है|हर कथा में आवेग, आंतरिकता और सरलता मन को अभिभूत करती है| श्रीश्री सुदीन कुमार मित्र के लेखन में भाषा की नक्काशी नहीं है, आत्मप्रशंसा का भी कोई प्रयास नहीं है| वे तो नितांत सहज भाव से, अनायास भंगिमा में अपने जीवन-पथ पर पाथेय बनी, अपनी ‘परम प्राप्ति’ की यादों और संस्मरण को कलमबंद कर गए हैं|मातृप्रेम, ममत्व और करुणा के रसों से पगी स्नेहमयी कृति|
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