By Acharya Janaki Vallabh Shastri (आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री)
By Acharya Janaki Vallabh Shastri (आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री)
₹350.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
255 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2014
ISBN
9789350485637
Weight
445 Gram
परंपरा और प्रगति का, चिंतन और व्यवहार का, संघटना और संरचना का, सिद्धांत और प्रेरणा का, अनुभूति और अभिव्यक्ति का, सौंदर्य और साधना का, शास्त्रीयता और रसमयता का अगर सहज और शक्तिपूर्ण सामंजस्य देखना हो तो आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के जीवन और सृजन की पड़ताल करनी होगी| मोटे तौर पर शिखर को देखकर अच्छी या बुरी अवधारणा बनाने-बिगाड़ने की जो हमारी प्रवृत्ति रही है, उसे छोड़कर ईमानदारी से शिखर-संधान करने पर शिखर का यथार्थ महत्त्व और शिखर होने की गरिमा को समझा जा सकता है| आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के शिखर होने के पीछे संपूर्ण समर्पण, दीर्घ-साधना, अटल-निष्ठा, अकूत विश्वास, अडिग आस्था और ज्योतिमर्यी प्रतिभा है| जिसने अपने संपूर्ण जीवन को होम कर दिया, तय है कि उसी का जीवन यज्ञ होगा| जानकीवल्लभ शास्त्री हिंदी साहित्य के शिखर व्यक्तित्वों में परिगणित होते हैं तो अपनी विराट् सृजनशीलता, व्यापक जीवनानुभूतियों और गहरी संवदेनशीलता के कारण| मानवीय मूल्यों की पक्षधरता, लयात्मक अभिव्यंजना और आंतरिक राग तथा हार्दिक सहजता शास्त्रीजी की विशिष्ट और निजी पहचान है, जो उन्हें सबसे अलग और महत्त्वपूर्ण बनाए रखकर शिखर-समादर देती है| शास्त्रीजी की गीतधर्मिता में रवींद्र और निराला की लयात्मक अनुभूतियाँ हैं तो मानसिक चेतना में वाल्मीकि और कालिदास का समाहार है| भावगत आध्यात्मिक गठन और चिंतन में रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का साधना-सान्निध्य है तो मनीषा में संर्घषशील पूर्णावतार कृष्ण का वैराट्य|
0
out of 5