₹200.00
MRPGenre
Print Length
172 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2013
ISBN
8173153817
Weight
330 Gram
भारत- भूमि पर अनेक महापुरुष और भारत माता के सपूत हुए हैं, जिन्होंने देश के लिए ही किया, देश के लिए ही जिया; जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए विदेशी आक्रांताओं से जीवन भर संघर्ष किया | अपना सुख तथा पत्नी-बच्चों के मोह को परे रख अनेक कष्टों को सहते हुए देश- हित में लगे रहे | भारत के उन्हीं सपूतों में एक हैं- भाई परमानंद | ब्रिटिश सरकार द्वारा ' प्रथम लाहौर षड्यंत्र- केस ' में भाई परमानंद को गिरफ्तार कर फाँसी की सजा सुनाई गई | किंतु फिर फाँसी की सजा परिवर्तित कर आजीवन कारावास में बदल दी गई | उन्हें इक्कीस वर्षों तक अंडमान की काल कोठरी में कैद रहना पड़ा | वहाँ उन्हें वे सभी कार्य करने पड़ते थे, जो आम कैदी करते थे | वहाँ भाईजी ने अनेक भीषण यातनाएँ सहीं | अंडमान के कारावास का जीवन कैसा था, अंग्रेज जेल अधिकारियों की नृशंसता आम कैदियों का व्यक्तित्व और उनका जीवन-व्यवहार कैसा था, कैसी-कैसी विकट और विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न होती थीं, कैसे-कैसे नियम-कानून थे और कैसे उन नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ती थीं, कानूनों की आड़ में कैदियों के साथ कैसा कठोरतापूर्ण और पाशव व्यवहार किया जाता था, कैसी दुनिया थी अंडमान के कारागार की-इन सबका जीवंत चित्रण है इस पुस्तक ' आपबीती ' में | पुस्तक में भाई परमानंद द्वारा जिए यातना के उन विकट क्षणों के वर्णन के साथ- साथ उन परिस्थितियों पर उनका अद्भुत चिंतन भी पढ़ने को मिलता है, जिससे पाठकों को भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य के अध्ययन में सहायता और प्रेरणा प्राप्त होती है |
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