₹175.00
MRPGenre
Novels & Short Stories
Print Length
144 pages
Language
Hindi
Publisher
Rajpal and sons
Publication date
1 January 2017
ISBN
9789386534408
Weight
100 Gram
‘लेडीज़ सर्कल’ वह बेबाक परिसर है जहाँ कोई परदेदारी नहीं होती। जहाँ सबकुछ खुला है। किसी भी शहरी खुलेपन को मात देती स्त्रियाँ सेक्सुआलिटी के मामले में कितनी वाचाल होती हैं। उनकी जमात में बैठने का मौका न मिलता तो कहाँ जान पाती कि कस्बाई औरतें अपनी तकलीफ़ों को कैसे हँसी में उड़ा कर खुद ही मज़े ले सकती हैं। उनकी दुनिया में ‘नो’ का मतलब ‘नो’ नहीं होता है। हमारे देश में यथार्थ तेज़ी से बदल रहा है। जो आज है, कल नहीं है। हम ऐसे अनिश्चित दौर में कहानी लिख रहे हैं जब पल-पल दुनिया बदल रही है। अपने समय के बदलते यथार्थ से जूझते हुए कहानी लिखना बहुत आसान नहीं है। ये मात्र मनोरंजक कथाएँ नहीं हैं, यथार्थ को आभासीय सत्य के सहारे, उसमें जोड़-तोड़ करते हुए हमारे समय के सच को सामने ला रही हैं।’’ इस पुस्तक की भूमिका से अपनी कलम से स्त्रियों की लड़ाई लड़ने वाली गीताश्री अपने कॅरियर के लिए घर से भाग गयी थीं और तब से निरन्तर वे स्त्रियों को समाज में बराबरी का दर्जा और आज़ादी दिलाने के लिए लिख रही हैं। कहानी, उपन्यास, कविता, निबन्ध और स्त्री-विमर्श जैसे विविध विषयों पर उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं। कथा साहित्य के लिए उन्हें 2013 में ‘इला त्रिवेणी सम्मान’, ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सम्मान’ और ‘बिहार गौरव सम्मान 2015’ से अलंकृत किया गया। स्वतन्त्र लेखन से पहले वह आउटलुक पत्रिका में सहायक सम्पादक और बिंदिया पत्रिका में सम्पादक रह चुकी हैं।
0
out of 5