₹180.00
MRPGenre
Novels & Short Stories
Print Length
169 pages
Language
Hindi
Publisher
Rajpal and sons
Publication date
1 January 2010
ISBN
9788170289487
Weight
320 Gram
प्रतिष्ठित कथाकार गिरिराज किशोर के नवीनतम उपन्यास " एक आग का दरिया है' में आधुनिक जीवन के अंतर्विरिधों के बीच टूटता-बनाता माँ और बेटी, पिता और पति, पत्नी व सन्तान के सम्बन्धों से बननेवाला एक ऐसा त्रिकोण है जो अटूट भी है और भुरभुरा भी । नशा पुरुष की व्यावसायिक शोभा हो सकता है तो स्त्री और उसकी इकलौती बेटी तथा पिता के बीच न मिल सकने वाले दो किनारों की वह भूमिका भी अदा करने का कारण बनता है । और तब स्वतन्त्रता के फितूर और प्यार के बन्धन के बीच रस्साकशी शुरू हो जाती है। खारा सागर, जिसमें निवेश (उपन्यास के पात्र) का जहाज महीनों तैरता था, वहाँ उसे दो बूँद जल को अनिवार्यता महसूस होने लगती है जो उस त्रिकोण को नयी जिन्दगी बक्श सके । शायद उस आग के दरिया से निकलने और उसमें उठती उत्ताल तरंगों के घर में घुसकर उमा के गर्भस्थ बच्चे को यहा ले जाने की कल्पित आशंका से प्यार का दो बूँद जल ही बचा सकता है । "अहंकार के मुकाबले संकल्प' ही खेवैया बनता है । और इसी के साथ अनदेखे 'शिवदा' की आवाज़ अन्दर गूँज जाती है जो बार-बार कहती है- 'अपना कटोरा अपने आप बनो जो बचा है उसे संभालो ।' उस आवाज को उमा रात-दिन अपने अन्दर महसूस करती है। आधुनिकता के इस छोर में उसे यह आवाज केसे सुनाईं पडी यह सवाल आपकी तरह उसे भी परेशान कर सकता है । आधुनिक परिवेश में दिन-दिन उपजते अन्तर्विरोधों के अँधेरे के बीच उम्मीद की लौ जगाती एक मार्मिंक कथा है गिरिराज किशोर का यह कृति 'इक आग का दरिया हैँ'… एक अत्यन्त रोचक उपन्यास ।
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