₹200.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
168 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9789381063088
Weight
320 Gram
फिर भी, मैं अंदर से कहीं डरा हुआ था| सहमा-सहमा-सा, बुरी तरह हिला हुआ| कभी तो उसमें रम-रमकर सबकुछ अगला-पिछला भूलकर उसकी गहरी जड़ोंवाली यारी में खो जाता; परंतु फिर उसे सहमी-शंकित नजरों से देखने लगता| सुखन कहता, “भई, ऐसे मत देखो| तुम्हारे ऐसे देखने से मुझे भय होता है| बचूँगा नहीं|” ऐसे वाक्यों से मैं और दहल जाता तो कहता, “सब तो बता चुका| बताओ, अब और क्या प्रमाण चाहिए?” “साइंस लॉजिक”, मेरे मुँह से फुसफुसाहट फूटी| पता नहीं, शब्द हवा में ही तैरकर रह गए या उस तक पहुँचे भी| दूसरे-तीसरे दिन मेरी हिम्मत जवाब दे गई| मैं सुखन से मिलने नहीं पहुँचा| दीगर दोस्तों ने भी चेताया-“क्यों किसी बड़ी मुसीबत को गले लगाने पर आमादा हो|” -इसी संग्रह से प्रस्तुत संग्रह की कहानियों में सामाजिक-राजनीतिक एवं मशीनी युग के हर क्षेत्र में एक-दूसरे से बाजी मार ले जाने की अंधी दौड़| एक ओर नैतिक मूल्यों के पतन, समाज में व्याप्त तकलीफें, बेचैनी और उदासी है तो दूसरी ओर शाश्वत नैतिक मूल्यों की रक्षा को समर्पित विभूतियों की दृश्यावलियाँ सामने आती हैं| अत्यंत मार्मिक एवं हृदय-स्पर्शी कहानियाँ|
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