Khatre Alpsankhyakwad Ke (खतरे अल्पसंख्यकवाद के)

By Muzaffar Hussain (मुजफ्फर हुसैन)

Khatre Alpsankhyakwad Ke (खतरे अल्पसंख्यकवाद के)

By Muzaffar Hussain (मुजफ्फर हुसैन)

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Specifications

Genre

Other

Print Length

155 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2010

ISBN

8173155283

Weight

305 Gram

Description

दुनिया जब से बनी है तब से ‘अल्पसंख्यक’ और ‘बहुसंख्यक’ शब्द का रिवाज चल पड़ा है| लेकिन इसका सबसे खतरनाक रूप उस समय देखने को मिलता है जब ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का राजनीतीकरण हो जाता है| आर्थिक रूप से लाभ उठाने के लिए भी इसका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है| लोकतंत्र में तो यह शब्द वोटों की टकसाल बन गया है| राजनीतिज्ञों ने इसे अपने लाभ के लिए खूब तोड़ा-मरोड़ा है| भारत के परिवेश में ‘अल्पसंख्यक’ और ‘आरक्षण’-ये दो ऐसे शब्द हैं जो पिछले सत्तावन वर्षों से सुनाई दे रहे हैं| जब तक वोटों की राजनीति नहीं बदलेगी तब तक यह धारदार हथियार राजनीतिज्ञों के लिए उपयोगी रहेगा| जो आरक्षित हैं, उनका सोचना है कि अल्पसंख्यक बनने में अधिक लाभ हैं और जो अल्पसंख्यक हैं, उनका मानना है कि जो लाभ आरक्षण प्राप्‍त करने में है वह अल्पसंख्यक बनने में नहीं| इसलिए ये दोनों वर्ग लाभान्वित होने पर भी संतुष्‍ट नहीं हैं| जो असंतोष हमें दिखलाई पड़ता है उसके मूल में इसी प्रकार के गढ़े गए शब्द हैं| राष्‍ट्र ही नहीं, धर्म के आधार पर बने समाज और जातियों में भी लोग स्वयं को कम और अधिक की दृष्‍टि से देखने लगे हैं| यह सारी स्थिति राष्‍ट्रीय एकता को प्रभावित करती है| इसलिए हमें अपने राष्‍ट्र को सुदृढ़ और शालीन रखना है तो इन शब्दों पर विचार करके कोई नई राह निकालनी होगी|


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