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Bharatiyata Ki Ore (भारतीयता की ओर)

Price: ₹ 400.00

Condition: New

Isbn: 9789350488584

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Other,

Publishing Date / Year: 2014

No of Pages: 292

Weight: 515 Gram

Total Price: 400.00

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उभरती हुई विश्‍व-ताकत होने के दावों के बावजूद सच्चाई यही है कि हम एंग्लो-सेक्शन दुनिया की आलोचना और तारीफ, दोनों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं और उसकी स्वीकृति पाने के लिए लालायित हैं| आजाद भारत के गृह मंत्रालय के नॉर्थ ब्लॉक स्थित मुख्यालय के बाहर औपनिवेशिक शासकों द्वारा अंग्रेजी में लिखी इन पंक्‍त‌ियों को कोई भी पढ़ सकता है- Liberty will not descend to a people, a people must raise themselves to liberty. महज कुछ दशक पहले तक विश्व भिन्न-भिन्न साम्राज्यों में बँटा हुआ था| बीसवीं सदी के मध्य में इन साम्राज्यों से स्वाधीन देशों का जन्म हुआ, पर उनकी राजनीतिक स्वतंत्रता के बावजूद भारत जैसे उपनिवेशवाद के शिकार रहे देशों के लिए सांस्कृतिक स्वतंत्रता एक स्वप्न जैसी रह गई है| प्रख्यात लेखक पवन वर्मा ने इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक में भारतीयों की मानसिक बनावट पर साम्राज्य के प्रभावों का विश्‍लेषण किया है| आधुनिक भारतीय इतिहास, समकालीन घटनाओं और निजी अनुभवों के आधार पर वे इस बात की पड़ताल करते हैं कि किस प्रकार उपनिवेशवाद से जुड़ी चीजों का असर आज भी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर छाया हुआ है| पूरे भावावेग, अंतर्दृष्‍ट‌ि और अकाट्य तर्कशक्ति के साथ पवन वर्मा दिखाते हैं कि भारत और गुलाम रह चुके अन्य देश सही मायनों में तभी स्वतंत्र हो पाएँगे और तभी विश्‍व का नेतृत्व करने की हालत में हो पाएँगे, जब तक कि वे अपनी सांस्कृतिक पहचान को फिर से हासिल नहीं कर लेते|