₹400.00
MRPGenre
Print Length
360 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9789350480380
Weight
515 Gram
महाराष्ट्र में संत-परंपरा हमेशा से बनी रही है| लेकिन सबसे आगे हैं-श्री संत ज्ञानेश्वर! जीव, जगत् और जगदीश्वर-इनमें जो मायापटल रहता है वह ब्रह्मविद्या से नष्ट होता है और परब्रह्म का ज्ञान होता है-यही ‘अद्वैत सिद्धांत’ उन्होंने सरल करके बताया| वे सौंदर्यवादी कवि थे| उन्होंने मन का सौंदर्य, भाषा का सौंदर्य, प्राकृतिक सौंदर्य, अर्थ का सौंदर्य प्राप्त किया| मोक्ष की अपेक्षा करते हुए जीवन बिताना, यानी सफल जीवन का आनंद ही मोक्ष है-यह उन्होंने समाज को समझाया| आज के विज्ञान-युग में ज्ञानेश्वर के उपदेशों का, तत्त्वज्ञान का क्या लाभ है? ‘ज्ञानेश्वरी’ काल-बाह्य तो नहीं है? उनका साहित्य इतिहास तो नहीं बन गया? ऐसे प्रश्न उपस्थित होते हैं| लेकिन उनके सभी ग्रंथों का मानसिक, प्राकृतिक, सामाजिक दृष्टि से जरा भी महत्त्व कम नहीं हुआ है| सौंदर्य तो कालातीत होता है| उनका साहित्य वर्तमान में महाराष्ट्र के हर परिवार में गोस्वामी तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ की तरह पढ़ा जाता है| आज धनसत्ता, राजसत्ता, शस्त्रसत्ता का उपयोग समाज-विघटन के लिए हो रहा है| कहीं भी शांति नहीं है| भारतीय अध्यात्म व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है| इसलिए अद्वैत का, अत्यानंद वैभव का, ब्रह्मानुभव का, परमात्म तत्त्व का, विश्व-व्यापकता का, आत्मशांति का संदेश देनेवाले संत ज्ञानेश्वर के वाड्.मय की आज नितांत आवश्यकता है| आशा है, सुधी पाठक इसका पारायण कर आत्म-शांति का अनुभव करेंगे|
0
out of 5