₹250.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
195 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8173153205
Weight
325 Gram
प्रमिला तनकर खड़ी हो गई | हाथ जोड़े, ' जो भीख उनसे माँगी थी वही आपसे माँगती हूँ | '
लाहड को आश्चर्य हुआ | वह भी खड़ा हो गया |
' क्या? प्रमिला, क्या?'
प्रमिला ने तुरंत झुककर उसके घुटने पकड़ लिये | वह पैर नहीं छू पाई |
लाहड ने थाम लिया |
प्रमिला रो पड़ी | रोते-रोते बोली, ' मेरे पिता और भाई की रक्षा करिए | उन्हें क्षमा कर दीजिए | '
लाहड का हाथ गले के गंडे पर गया और फिसलकर नीचे आ गया | प्रमिला उसके घुटने जकड़े थी | लाहड हिल गया | ' तुमने कैसे जाना कि मेरे मन में उनके प्रति हिंसा है?' लाहड का कंठ रुद्ध हो गया था |
' मैंने सुन लिया है | अंगद ने बतलाया | '
' ओह! उसने | उसकी नीचता पर शंका कुछ समय से मेरे मन में हो गई है | तुम पलंग पर बैठ जाओ | बात करूँगा | तुम्हें दुःखी नहीं देख सकता | ' ' नहीं, मैं वचन लिये बिना नहीं मानूँगी | '
' अच्छा, मैं वचन देता हूँ प्रमिला | अब तो छोड़ो | '
' एक और | '
- इसी उपन्यास से
देश में कभी भी आंभियों और जयचंदों की कमी नहीं रही है; पर साथ ही ऐसे पराक्रमी देशभक्तों की भी कमी नहीं रही है, जो अपनी मातृभूमि की समृद्धि के लिए, उसकी सुरक्षा के लिए प्राणपण से जीवन भर लगे रहे |
प्रस्तुत उपन्यास में तत्कालीन कालिंजर व त्रिपुरि राज्यों की समृद्धि व स्थापत्य कला का ऐसा सजीव वर्णन है, जो भुलाए न भूले |
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