₹250.00
MRPGenre
Print Length
167 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2017
ISBN
9789383110292
Weight
330 Gram
भारत में सिनेमा ने हाल ही में सौ वर्ष पूरे किए हैं| सौ वर्षों की इस यात्रा में फिल्मों में नारी के प्रस्तुतीकरण और उसके समाज पर प्रभावों पर काफी कुछ लिखा और बोला गया| आलोचनाओं और प्रशंसाओं के बीच एक सत्य हमेशा मौजूद रहा कि फिल्मों की शुरुआत से ही नायिकाओं का अपने समय के नारी समाज पर गहरा प्रभाव रहा है| आम नारी सदैव ही अपने दौर की नायिकाओं से आकर्षित और प्रभावित रही है| यह प्रभाव चाहे नायिकाओं द्वारा निभाए पात्रों का हो या उनकी जीवनशैली का| दूसरी ओर समाज के वास्तविक किरदारों ने परदे के किरदारों को गढ़ने में सहायता की| फिल्मों के नारी पात्रों और नारी समाज के इन्हीं अंतर्संबंधों को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है| वर्तमान जो औरत की स्थिति दिखाई दे रही है, वह कई वास्तविक और परदे के किरदारों के सामूहिक प्रभाव का नतीजा है| यह एक यात्रा है, यह जानने की कि नारी समाज का सौ साल का इतिहास किस-किस दौर से गुजरा| एक कोशिश है, परदे के किरदारों के जरिए औरत के उन एहसासों और जज्बातों को महसूस करने की, जिन्हें हम परदे के किरदारों के बगैर शायद नहीं कर पाते| हिंदी सिनेमा पर वैसे ही कम पुस्तकें लिखी गई हैं, हिंदी भाषा में तो इनका अकाल सा है| सिनेमा में नारी के प्रस्तुतीकरण पर क्रमबद्ध एवं विश्लेषणात्मक दृष्टि से लिखी गई यह पुस्तक बेहद रोचक एवं पठनीयहै|
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