₹325.00
MRPGenre
Memoir & Biography, Novels & Short Stories
Print Length
232 pages
Language
Hindi
Publisher
Rajpal and sons
Publication date
1 January 2012
ISBN
9788170289654
Weight
400 Gram
हर बड़े और सचेत लेखक की एक कार्यशाला होती है। वहीं उसकी रचना अपने अंतिम रूप की और बढ़ती नज़र आती है। सजग पाठक जब उस लेखक को पढ़ते हैं तो उनके मन में कुछ जिज्ञासायें जगती हैं, कुछ सवाल उठ खडे होते हैं। लिहजा वे अपने प्रिय लेखक की कार्यशाला से झाँकना चाहते हैं। यूरोप और अमरीका के ज्यादातर बड़े लेखक और कलाकार इस तथ्य से अवगत रहे हैं। उन्होंने आत्मकथा, रोज़नामचे, डायरी और भेंटवार्ता के रूप में अपनी कार्यशाला के झरोखे अपने पाठकों के -शोधकर्ताओं के लिए खोले हैं। हिन्दी में यह परम्परा बहुत समृद्ध नहीं रही। अकूत रचना सामर्थ्य के धनी साहित्यकार कृष्ण बलदेव वेद ने इस ज़रुरत को शिद्द के साथ समझा है ...- कुछ स्वप्रेरणा से, कुछ अमरीका और यूरोप की साहित्यिक-आकादमिक दुनिया के अनुभवों से। उसका सबूत है उनकी अद्भुत डायरी 'ख्वाब है दीवाने का' से उनकी वैचारिक डायरी के प्रकाशन का सिलसिला शुरू हुआ। "जब आँख खुल गई' इस सिलसिले की चौथी कड़ी है। यहाँ अगर पाठको और शोधार्थियों को कृष्ण बलदेव वेद की अधिकांश कृतियों की पृष्ठभूमि का पता चलेगा तो उनके अपने दौर की साहित्यिक-वैचारिक हलचलों और उनकी अपनी बेबाक प्रतिक्रियाओं और आत्मस्वीकृतियों का दीदार भी होगा। भाषा और शैली की दृष्टि से 'जब आँखखुल गई' में वेद के उपन्यासों का सा प्रवाह लीलाधरिया अंदाज़ है।
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