Sita: Ramayan Ka Sacharit Punarkathan (सीता: रामायण का सच्चरित्र पुनर्कथन)

By Devdutt Pattanaik (देवदत्त पटनाइक)

Sita: Ramayan Ka Sacharit Punarkathan (सीता: रामायण का सच्चरित्र पुनर्कथन)

By Devdutt Pattanaik (देवदत्त पटनाइक)

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Specifications

Genre

Devotional

Print Length

395 pages

Language

Hindi

Publisher

Manjul Publication

Publication date

1 January 2017

ISBN

9780143429241

Weight

495 Gram

Description

रथ नगर से बहुत दूर, वन के मध्य जा कर ठहर गया. दमकती हुई सीता, वृक्षों की ओर जाने को तत्पर हुईं. सारथी लक्ष्मण अपने स्थान पर स्थिर बैठे रहे. सीता को लगा कि वे कुछ कहना चाहते हैं, ओर वे वहीँ ठिठक गईं. लक्ष्मण ने अंततः अपनी बात कही, आँखें धरती में गड़ी थीं, 'आपके पति, मेरे ज्येष्ठ भ्राता, अयोध्या नरेश राम, आपको बताना चाहते हैं कि नगर में चारों ओर अफ़वाहें प्रसारित हो रही हैं. आपकी प्रतिष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगा है. नियम स्पष्ट है : एक राजा की पत्नी को हर प्रकार के संशय से ऊपर होना चाहिए. यही कारण है कि रघुकुल के वंशज ने आपको आदेश दिया है कि आप उनसे, उनके महल व् उनकी नगरी से दूर रहें. आप स्वेच्छा से कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हैं. परंतु आप किसी के सम्मुख यह प्रकट नहीं कर सकती कि आप कभी श्री राम की रानी थीं.' सीता ने लक्ष्मण के काँपते नथुनों को देखा. वे उनकी ग्लानि व् रोष को अनुभव कर रही थीं. वे उनके निकट जा कर उन्हें सांत्वना देना चाहती थीं, किन्तु उन्होंने किसी तरह स्वयं को संभाला. 'आपको लगता है कि राम ने अपनी सीता को त्याग दिया है, है न? सीता ने कोमलता से पूछा. परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया. वे ऐसा कर हे नहीं सकते. वे भगवान हैं - वे कभी किसी का त्याग नहीं करते. और मैं भगवती हूँ - कोई मेरा त्याग लार नहीं सकता.' उलझन से घिरे लक्ष्मण अयोध्या की ओर प्रस्थान कर गए. सीता वन में मुस्कुराई ओर उन्होंने अपने केश बन्धमुक्त कर दिए.


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