₹300.00
MRPGenre
Print Length
260 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2008
ISBN
8173150710
Weight
425 Gram
रोम रोम में राम हनूमान सम नहिं बड़ भागी| नहिं कोउ राम चरन अनुरागी|| शिवजी कहते हैं कि हनुमान के समान न तो कोई बड़भागी है और न राम के चरणों का अनुरागी| यह कथन बड़ा गहरा है| कुछ लोग सोचते हैं कि अच्छा खा-पीकर, खूब धन कमाकर, बड़ा मकान बनवाकर आदमी भाग्यशाली हो जाता है| लेकिन क्या यही मनुष्य का चरम लक्ष्य है? क्या ऐश्वर्य उसे धन्य करने की शक्ति रखता है? हनुमान 'राम-काज' करके बड़भागी बन गये थे| वास्तव में इस संसार में 'विद्यावान्, गुणी, अतिचातुर' लोग बड़ी मुश्किल से 'राम-काज' करने के लिए आतुर होते हैं| प्राय: आदमी कुछ खूबियों को पाकर अपनी तिजोरियाँ भरना चाहता है, नाम कमाना चाहता है, अपना साइनबोर्ड हर जगह लगवाना चाहता है| दूसरे के हित की कामना करने का तो उसे खयाल भी नहीं आता| इस तरह के काम उसके हिसाब से 'मूर्ख' करते हैं| कीचड़ में सने चिन्तन के इस चक्के को हनुमान ने सही दिशा में मोड़ा| बेजोड़ प्रतिभा और अतुलित बल के कुबेर होते हुए भी उन्होंने स्वार्थ के लिए उसका उपयोग कभी नहीं किया| साधारण मनुष्य में यदि विद्या, गुण या चतुराई में से कोई एक थोड़ा भी आ जाए तो वह ऐंठकर चलने लगता है| पर हनुमान सर्वगुण-सम्पन्न होकर भी सेवक ही बने रहे| आज के संसार को पहले से कहीं अधिक सेवा की, भक्ति की जरूरत है| और इसके सबसे बड़े आदर्श और प्रेरणापुरुष हैं हनुमानजी| प्रस्तुत पुस्तक 'रोम रोम में राम' में हनुमान के महिमामय चरित्र का गहन, ललित और मोहक अंकन हुआ है|
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