₹500.00
MRPGenre
Print Length
288 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9788185828145
Weight
450 Gram
पर्यावरण शिक्षा की सार्थकता स्वत: स्पष्ट है| यह एक ऐसी शिक्षा है, जो मानव को जीने का सलीका सिखाती है| यह वह रास्ता बताती है जो मनुष्य की विकास यात्रा और प्रकृति के पारिस्थितिकी तंत्र के बीच में संतुलन और समन्वय का मार्ग है| यह आगे की पीढ़ियों को जीवन की गारंटी देती है और प्रकृति के भूगोल तथा मनुष्य के इतिहास के साथ-साथ रहना सिखाती है| पर्यावरण शिक्षा की सार्थकता को विश्व-भर ने स्वीकारा है| पूरा संसार इस बात को लेकर चिंतित है कि भयंकर वन विनाश, बे-लगाम प्रदूषण, संसाधनों का अंधाधुंध शोषण, नाभिकीय शास्त्रों की मूर्खतापूर्ण अंधी दौड़ और औद्योगिक उन्नति के नाम पर प्रकृति से अशिष्ट छेड़छाड़ मनुष्य जाति को ही नहीं, संपूर्ण जीव-जगत् को विनाश के कगार पर खड़ा कर देगी| पर्यावरण को लेकर यों तो अनेक किताबें हैं; लेकिन अधिकांश ऐसी हैं, जिनमें आधे-अधूरे बिंदुओं को लिया गया है या कुछेक बिंदुओं पर अधिक जोर देकर अन्य बिंदुओं को उपेक्षा भाव से समेटा गया है| एक अध्येता चाहता है कि उसे प्रत्येक बिंदु पर सिलसिलेवार और पर्याप्त पाठ्य सामग्री मिले, न अनावश्यक विस्तार हो और न खटकनेवाली कमी| वह उस सामग्री की तलाश में रहता है जो पर्यावरण के बारे में उसे एक सही दृष्टि दे सके| प्रस्तुत पुस्तक में यही विनीत प्रयास किया गया है| अध्येता को किसी विचार से बाँधने के स्थान पर विचार के सारे सिरे खुले रखे गए हैं; ताकि पाठक अपने-अपने दृष्टिकोण से इस विषय समस्या पर चिंतन कर सके| यह पुस्तक पाठ्यक्रमों के अध्येताओं के साथ-साथ सामान्य पाठक के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी|
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