लाल रेखा हिन्दी के लोकप्रिय उपन्यासों में मील का पत्थर है जिसने बड़े पैमाने पर हिन्दी के पाठक बनाए। 1950 में लिखे इस उपन्यास में उस समय हिन्दी उपन्यास की जितनी धाराएँ थीं, सभी को एक साथ इसमें समाहित किया गया है। रोमांस, रहस्य, राष्ट्रवाद और सामाजिक मूल्यों से ओत-प्रोत कथानक एक मानक की तरह है। देश की आज़ादी के संग्राम की पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास में लाल और रेखा की प्रेम कहानी है लेकिन इसमें प्रेम से बढ़कर देश-प्रेम दिखाया गया है। देशहित व्यक्तिगत हितों से अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। जहाँ एक ओर निज और समाज के हितों की बात है वहीं दूसरी ओर स्त्री और पुरुष की समानता की बात भी है। लाल रेखा अपने विषय के लिए ही नहीं, काव्यात्मक भाषा के लिए भी आज तक जाना जाता है। आज से करीब 75 साल पहले लिखा यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है। कुशवाहा कान्त जिनका पूरा नाम कान्त प्रसाद कुशवाहा था, वे 34 वर्ष की छोटी उम्र में हिन्दी साहित्य जगत को बहुत कुछ दे गये। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। जहाँ एक ओर उन्होंने रोमांटिक और सामाजिक उपन्यास लिखे वहीं दूसरी ओर जासूसी और क्रान्तिकारी उपन्यासों का सृजन किया। निस्संदेह लाल रेखा उनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास है। इसके अलावा उनके कुछ नामी उपन्यास पारस, विद्रोही सुभाष, आहुति, नीलम, नगीना इत्यादि हैं। उन्होंने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। 1952 में 34 वर्ष की उम्र में एक जानलेवा आक्रमण में साहित्य का यह चिराग बुझ गया।
Lal Rekha (लाल रेखा)
Author: Kushwaha Kant (कुशवाह कांत)
Price:
₹
245.00
Condition: New
Isbn: 9789389373035
Publisher: Rajpal and sons
Binding: Paperback
Language: Hindi
Genre: Fiction,Classic,
Publishing Date / Year: 2022
No of Pages: 160
Weight: 240 Gram
Total Price: ₹ 245.00
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