Madhavji Scindhia (माधवजी सिंधिया)

By Vrindavan Lal Verma (वृन्दावनलाल वर्मा)

Madhavji Scindhia (माधवजी सिंधिया)

By Vrindavan Lal Verma (वृन्दावनलाल वर्मा)

350.00

MRP ₹385 10% off
Shipping calculated at checkout.

Specifications

Genre

History

Print Length

383 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2011

ISBN

8173150745

Weight

465 Gram

Description

यह बात उस युग की है जिसके लिए कहा जाना है कि मराठे और जाट हल की नोक से, स‌िक्ख तलवार की धार से और दिल्ली के सरदार बोतल की छलक से इतिहास लिख रहे थे! और अंग्रेज उस समय क्या थे? क्लाइव के विविध रूपों के समन्वय -व्यवसाय सिपाहीगीरी, भेड़ की खाल उतारनेवाली राजनीतिज्ञता, बेईमानी, शूरता, धूर्तता | उस युग में चुनाव नहीं होते थे, परंतु राजनीतिक, राजनीतिज्ञ और राजदर्शी तो थे ही | और राजनीति के क्षेत्र में भयंकर महत्त्वाकांक्षी भी | राजदर्शी वह जो भेड़ के बाल काटे और राजनीतिक वह जो भेड़ की खाल खींच डालने पर ही जुट पड़े | ऐसे समय में माधवजी (महादजी सिंधिया) पैदा हुए | आँधी-तूफान की भँवरों और असंख्य धक्कों में छाती ताने, सिर सीधा किए हुए एक ही माधव - शायद उस युग में दूसरा कोई नहीं | तभी तो कीन ने कहा था, '' एशिया - भर के जननायकों में कोई भी ऐसा नाम नहीं है जो माधवजी सिंध‌िया की बराबरी कर सके |'' और जनरल मालकम ने उन्हें ‘Steel Under Velvet Gloves', ' मखमली दस्तानों में फौलाद ' की उपाधि प्रदान की | -इसी पुस्तक के परिचय से भारत के महान् राजदर्शी माधवजी स‌िंध‌िया का चरित्र प्रस्तुत कर वर्माजी ने भारतीय साहित्य को वह अमर कृति उपलब्‍ध करा दी है जो आनेवाले समय में भी समाज और राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन करती रहेगी |


Ratings & Reviews

0

out of 5

  • 5 Star
    0%
  • 4 Star
    0%
  • 3 Star
    0%
  • 2 Star
    0%
  • 1 Star
    0%