₹250.00
MRPGenre
Print Length
223 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9789380823720
Weight
380 Gram
यदि जीवन को सार्थक बनाना है, तो जीना सीखना होगा| जब हमें जीना है, तो हमें कर्मशील होना होगा| जब हमें कर्म करना अनिवार्य है, तो हमें हर क्षण अपना रास्ता चुनना होगा| रास्ता कौन सा चुना जाए, उसे आँकने के लिए हमारे पास, हमारे अंतःकरण में कुछ मापदंडों का होना अनिवार्य है कि किन-किन बातों को, किन-किन चीजों को, किन-किन लोगों को हम महत्त्व देते हैं और किनको हम कम महत्त्व देते हैं अथवा कौन हमारे लिए बिल्कुल ही महत्त्वहीन है| कुछ मौलिक मूल्यों का अंकन करके, उनको अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना ही पड़ेगा| उन मूल्यों को सहजने से ही जीवन रसमय बनेगा, परम सुख का अनुभव होगा तथा सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह होगी कि उन मूल्यों को निर्धारित करने के उपरांत अपने दैनिक जीवन में कब, कहाँ, कैसे, क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, इसका तत्काल निर्णय लेने की एक अद्भुत क्षमता अपने अंदर विकसित हो जाएगी| यदि उन मूल्यों को, प्रलोभन, भय अथवा आलस्य के कारण छोड़ देते हैं, तो सारा जीवन ही सारहीन, निर्मूल सा बनकर रह जाता है, एक बोझ सा हो जाता है, जिसे ढोना स्वयं में एक अजीब समस्या बन जाती है| -इसी पुस्तक से इस पुस्तक में जीवन को संस्कारवान बनाने और उसे सही दिशा में ले जाने के जिन सूत्रों की आवश्यक्ता है, उनका बहुत व्यावहारिक विश्लेषण किया है| लेखक के व्यापक अनुभव से निःसृत इस पुस्तक के विचार मौलिक और आसानी से समझ में आनेवाले हैं| जीवन को सफल व सार्थक बनाने की प्रैक्टिकल हैंडबुक है यह कृति|
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