₹500.00
MRPGenre
Culture And Religion
Print Length
304 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8173152314, 9789352662777
Weight
495 Gram
हिंदुत्व एक ऐसी भू-सांस्कृतिक अवधारणा है, जिसमें सभी के लिए आदर है, स्थान है और सह-अस्तित्व का भाव भी | इस सह-अस्तित्व-प्रधान सांस्कृतिक चेतना ने इसे अत्यंत उदार, सहिष्णु और लचीला भी बनाया | बात तब बिगड़ी, जब विदेशी आक्रमणकारियों की संस्कृतियों ने इस अति सहिष्णु संस्कृति की उदारता का लाभ उठाकर इसकी जड़ें ही काटनी प्रारंभ कर दीं | हिंदुत्व की इस अति सहिष्णुता को उसकी कायरता माना गया तथा उसके जो भी मूल तत्त्व थे, उन्हें नष्ट- भ्रष्ट करने की हर संभव चेष्टा की गई; अभी भी इस हेतु तरह-तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं | अति सहिष्णुता ने ' हिंदुत्व ' अर्थात् ' भारतीयता ' के समर्थकों व अनुयायियों को उदासीन, क्लैव्य और भाग्यवादी बना दिया है |
' आत्मवत् ' का जो सर्वकल्याणकारी दर्शन है, उसका अर्थ यह नहीं था कि संसार व व्यवहार के धरातल पर हम स्वयं के प्रति अपने कर्तव्य को भूल जाएँ और आत्मरक्षा के प्रति सतर्क न रहें | आक्रमणकारियों के समक्ष पलायन करने की नीति का सह- अस्तित्व, सहिष्णुता के दर्शन और सिद्धांत से कुछ भी लेना-देना नहीं है | जब-जब आक्रमणकारी शत्रुओं से युद्ध करने में हिंदुत्व से चूक हुई है तब-तब केवल अपमान सहना पड़ा है; बल्कि पराधीनता में भी रहना पड़ा है | सत्य की खोज के प्रति हिंदुत्व इतना समर्पित है कि वह कहीं समझौता नहीं करता | उसके लिए जगत् होना वास्तविक सत्य नहीं है वह तो मिथ्या है; अर्थात् जो कुछ भी है, वह वास्तव में स्थायी सत्यप्रसूत केवल ' अद्वैत ' ही है | सब उसीके रूप, उसीकी कृति, उसके ही कर्म, उसका ही संगीत, उसकी ही ध्वनि, उसकी ही गति, अणु-परमाणु क्षर-अक्षर-सभी वही, एक परम चिद्सत्ता, परम चैतन्य |
-इसी पुस्तक से
0
out of 5