कैकेयी की कथा श्रेष्ठ मूल्यों से बिछलने की कथा है| जब यशस्वी मनुष्य स्वार्थवश अपने आचरण को संकुचित करता है तब जीवन में उत्पात और उपद्रव की सृष्टि होती है| इसीलिए बार-बार हमारे धर्म-ग्रन्थों ने दोहराया है कि उच्च पदस्थ व्यक्ति को अनिवार्यत: सदाचार करना चाहिए| जिस पथ पर श्रेष्ठ जन चलते हैं वही मार्ग है| कैकेयी चलीं, लेकिन उनकी यात्रा मार्ग नहीं बन पायी, क्योंकि वह आदर्शों से फिसल गयी थीं| आचरण की प्रामाणिकता की पहचान आपदा के समय होती है| शान्त समय में हर व्यक्ति श्रेष्ठ और सदाचारी होता है| आपदा मनुष्य के आचरण को अपने ताप की कसौटी पर कसती है| जो निखर गया वह कुन्दन है, जो बिखर गया वह कोयला| कैकेयी आपदा के इस ताप में बिखर गयीं| ईर्ष्या, द्वेष और प्रतिशोध में फँसकर उन्होंने 'परमप्रिय' राम को दण्ड दे दिया| जीवन में श्रेष्ठ एवं उदात्त मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए प्रतिबद्ध हिन्दू चित्त ने कैकेयी को राम पर आघात करने के लिए दण्ड दिया| उसने निर्ममतापूर्वक कैकेयी के नाम को हिन्दू परिवार की नाम-सूची से बाहर कर दिया| अशिव का तिरस्कार और शिव का सत्कार, यही हिन्दू चित्त की विशेषता है|
Ath Kaikeyi Katha (अथ कैकयी कथा)
Author: Rajendra Arun (राजेंद्र अरुण)
Price:
₹
250.00
Condition: New
Isbn: 8173156166
Publisher: Prabhat Prakashan
Binding: Paperback
Language: Hindi
Genre: Novels And Short Stories,
Publishing Date / Year: 2007
No of Pages: 220
Weight: 375 Gram
Total Price: ₹ 250.00
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