₹300.00
MRPGenre
Culture And Religion
Print Length
151 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
8188140800, 9789386871466
Weight
305 Gram
भारतीय पौराणिक साहित्य-भंडार में एक-से-एक अप्रतिम बहुमूल्य रत्न भरे पड़े हैं| अष्टावक्र गीता अध्यात्म का शिरोमणि ग्रंथ है| इसकी तुलना किसी अन्य ग्रंथ से नहीं की जा सकती| अष्टावक्रजी बुद्धपुरुष थे, जिनका नाम अध्यात्म-जगत् में आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है| कहा जाता है कि जब वे अपनी माता के गर्भ में थे, उस समय उनके पिताजी वेद-पाठ कर रहे थे, तब उन्होंने गर्भ से ही पिता को टोक दिया था-'शास्त्रों में ज्ञान कहाँ है? ज्ञान तो स्वयं के भीतर है! सत्य शास्त्रों में नहीं, स्वयं में है|' यह सुनकर पिता ने गर्भस्थ शिशु को शाप दे दिया, 'तू आठ अंगों से टेढ़ा-मेढ़ा एवं कुरूप होगा|' इसीलिए उनका नाम 'अष्टावक्र' पड़ा| 'अष्टावक्र गीता' में अष्टावक्रजी के एक-से-एक अनूठे वक्तव्य हैं| ये कोई सैद्धांतिक वक्तव्य नहीं हैं, बल्कि प्रयोगसिद्ध वैज्ञानिक सत्य हैं, जिनको उन्हेंने विदेह जनक पर प्रयोग करके सत्य सिद्ध कर दिखाया था| राजा जनक ने बारह वर्षीय अष्टावक्रजी को अपने सिंहासन पर बैठाया और स्वयं उनके चरणों में बैठकर शिष्य-भाव से अपनी जिज्ञासाओं का शमन कराया| यही शंका-समाधान अष्टावक्र संवाद रूप में 'अष्टावक्र गीता' में समाहित है| ज्ञान-पिपासु एवं अध्यात्म-जिज्ञासु पाठकों के लिए एक श्रेष्ठ, पठनीय एवं संग्रहणीय आध्यात्मिक ग्रंथ|
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