₹250.00
MRPGenre
Print Length
179 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
9788177213836
Weight
325 Gram
आज परिवार में, समाज में, देश में, विश्व में-अर्थात् हर तरफ इतनी विसंगतियाँ व विडंबनाएँ बिखरी हुई हैं कि मनुष्य का हँसना दूभर हो गया है| नाना प्रकार के तनाव, चिंताएँ आज इनसान को घेरे हुए हैं| अजीब भाग-दौड़ हो रही है| विकट आपा-धापी मची हुई है| सबकुछ बाजार हुआ जाता है| ऐसे माहौल में गीत में यह सामर्थ्य है कि वह उदास चेहरों पर ठहाकों के फूल खिला दे| और कटाक्ष करने पर उतरे तो क्या नाते-रिश्तेदार, क्या नेता-अभिनेता, क्या कर्मचारी-अधिकारी-यानी परिवार-समाज, देश-विश्व का कोई ऐसा सदस्य नहीं, जो गीत के व्यंग्य-बाणों से बच सके| बुराइयों पर बड़े सलीके से वार करते हैं ये श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य गीत|
0
out of 5