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Manav Charitra Ke Vyangya (मानव चरित्र के व्यंग)

Price: ₹ 400.00

Condition: New

Isbn: 9789352664054

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Novels And Short Stories,Humor,

Publishing Date / Year: 2017

No of Pages: 141

Weight: 230 Gram

Total Price: 400.00

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अभी- अभी मेरे- सामने गिरगिट नाम का एक जंतु उभरा है | वह बालिश्त- भर का आकार लिये, बेरी के पेड़ की पतली- सी टहनी से चिपका हुआ है | मैं उसकी तरफ ध्यान से देखता हूँ | यह क्या? कभी उसके शरीर का हर हिस्सा लाल हो जाता है, कभी हरा, कभी पीला | यह हर पल रंग कैसे बदल लेता है? मैं अपने आप से यह प्रश्‍न बार-बार पूछता हूँ | भीतर से आई कोई अजनबी-सी आवाज मुझे चौंका देती है | गिरगिट ठीक ऐसे ही रंग बदलता है जैसे आदमी | बस, अंतर इतना है कि गिरगिट बेचारे के रंग दिखाई दे जाते हैं, आदमी के रंग दिखाई नहीं देते | आदमी से अधिक ' टेक्नीकलर ' चीज तो दुनिया में कोई है नहीं | आदमी तो वह प्राणी है जो रंग तो बदलता है पर गिरगिट की भांति उसका प्रदर्शन नहीं करता | गिरगिट के रंगों से आदमी को कोई खतरा नहीं, पर आदमी के रंग से? ? गिरगिट के भीतर जितने रंग हैं और जितने रंग वह बदलता है, वे कम-से- कम सब गिरगिटों में एक जैसे होते हैं पर आदमी और आदमी के रंगों में तो जमीन- आसमान का अंतर है | भगवानदत्त के जो रंग-ढंग हैं वे ईश्‍वरप्रसाद के नहीं और ईश्‍वरप्रसाद के जो रंग-ढंग हैं वे परमात्माशरण के नहीं, और परमात्माशरण के जो हाव- भाव हैं वे ब्रह्मानंद के नहीं | कम-से-कम एक गिरगिट और दूसरा गिरगिट अपनी अंतरात्मा में तो एक है | गिरगिट-गिरगिट में समानता और आदमी- आदमी में असमानता | मानव चरित्र के गिरते ग्राफ पर तीखी चोट करने वाले ये व्यंग्य आदमी के चेहरे को बेनकाब करते हैं |