₹200.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
159 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
8185828946
Weight
300 Gram
सुबह-सुबह ही कनपटी पर जैसे दुनाली तान दी गई | फोन से आती आवाज ने कहा, ' हिंदी की यह प्रतिष्ठित पत्रिका जानना चाहती है कि क्यों लिखती हैं आप व्यंग्य?' कटु सत्य यही है कि मेरे व्यंग्य लिखने का पहला कारण एक, पागल कुत्ता है, जो जब-तब मुझे काट खाता है और मैं लिखने बैठ जाती हूँ | ताज्जुब की बात तो यह है कि ज्यादातर पाठकों को मेरे वे ही व्यंग्य धारदार और पैने लगे हैं जो मैंने इस कुत्ते के काट खाने के बाद लिखे हैं | मैंने उस कुत्ते के दाँत तक पास से नहीं देखे; पर व्यंग्य रचना पैनी हो जाती है | आपसे यह भी बता दूँ कियह कुत्ता न घर का है, न घाट का | हिंदी लेखक का कुत्ता है न! जब लेखक ही ताउम्र किसी घाट नहीं लग पाता हो तो उसके कुत्ते की क्या बिसात! अब आपसे छुपाना क्या! आप खुद ही समझ गए होंगे कि यह कुत्ता भी मेरा अपना नहीं बल्कि एक धोबी से कॉण्ट्रैक्ट पर लिया हुआ है | दरअसल मुझे अपनी लेखकीय कुंठा ढोने के लिए यही सबसे उपयुक्त लगा | एक समय की बात है, हिंदुस्तान में एक भाषा हुआ करती थी | उसका नाम था हिंदी | चूँकि यह भाषा समूचे हिंदुस्तान की गरिमा की प्रतीक थी, इसलिए इसे वातानुकूलित ऑफिसों की एयरटाइट फाइलों में बंद करके रखा जाता था | सरकार की तरफ से इसकी सुरक्षा के कड़े निर्देश थे | जेड क्लास सुरक्षा चक्रों के बीच, संसद् की बैठकों में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था कि ' माननीय सभासदो! माननीय अध्यक्षजी!' के अतिरिक्त सबकुछ अंग्रेजी में ही हो | इसलिए कुछेक सिरफिरों थे छोड़कर सारे प्रस्ताव अंग्रेजी में ही प्रस्तावित और खारिज किए जाते थे | सारी-की-सारी योजनाएँ और बड़े-से-बड़े स्कैंडल अंग्रेजी में ही किए जाते थे, जैसे बोफोर्स | सिर्फ कुछ विशेष प्रकार के स्कैंडल हिंदी में होते थे, जैसे प्रतिभूति घोटाला | -इसी पुस्तक से
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