₹300.00
MRPGenre
Novels And Short Stories, Social Science
Print Length
143 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2020
ISBN
9789380186894
Weight
295 Gram
राजा राममोहन राय भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत और आधुनिक भारत में सामाजिक समरसता के जनक थे| वे ब्राह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषाई प्रेस के प्रवर्तक, जन-जागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नवजागरण युग के पितामह थे| उन्होंने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की|
हिंदी के प्रति उनका अगाध समर्पण था| वे रूढ़िवाद और कुरीतियों के विरोधी थे; लेकिन संस्कार, परंपरा और राष्ट्र-गौरव उनकी थाती थे| उनका जन्म सन् 1774 में बंगाल में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था| 15 वर्ष की उम्र तक उन्हें बँगला, संस्कृत, अरबी तथा फारसी भाषाओं का ज्ञान हो गया था| उन्होंने ब्राह्म समाज की स्थापना की तथा विदेश (इंग्लैंड व फ्रांस) भ्रमण भी किया| राममोहन राय ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर राष्ट्र-सेवा में जुट गए| बाल-विवाह, सती-प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, परदा-प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया और विधवा पुनर्विवाह पर जोर दिया| राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैगजीन', 'संवाद कौमुदी', 'मिरात-उल-अखबार', 'बंगदूत' जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया|
प्रखर चिंतक और दूरद्रष्टा राजा राममोहन राय की सांगोपांग प्रेरक जीवन-गाथा|
0
out of 5