₹300.00
MRPGenre
Print Length
144 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2017
ISBN
9789383110049
Weight
285 Gram
संत रविदास का जन्म वाराणसी के निकट मंडूर नामक गाँव में संवत् 1433 को माघ पूर्णिमा के दिन माना जाता है| उनके विभिन्न नाम हैं-रविदास, रैदास, रादास, रुद्रदास, सईदास, रयिदास, रोहीदास, रोहिदास, रूहदास, रमादास, रामदास, हरिदास| इनमें से रविदास तथा रैदास दो नाम तो ऐसे हैं, जो दोनों ही उनकी रचनाओं में उपलब्ध होते हैं|
बचपन से ही उनकी रुचि प्रभु-भक्ति और साधु-संतों की ओर हो गई थी| बड़ा होने पर उन्होंने चर्मकार का अपना पैतृक काम अपना लिया| जूता गाँठते हुए वे प्रभु भजन में लीन हो जाते| जो कुछ कमाते, उसे साधु-संतों पर खर्च कर देते|
रविदास ने उस समय के प्रसिद्ध भक्त गुरु रामानंद से दीक्षा ली| उन्होंने ऊँच-नीच के मत का खंडन किया| वे अत्यंत विनीत और उदार विचारों के थे| उनकी भक्ति उच्च दर्जे की थी| वे कठौती में ही गंगाजी के दर्शन कर लिया करते थे|
'संत रैदास की वाणी' में 87 पद तथा 3 साखियों का संकलन 'रैदास' के नाम से हुआ है, जिनमें से लगभग सभी में 'रैदास' नाम की छाप भी मिलती है| प्रस्तुत पुस्तक में संत रविदास के आध्यात्मिक जीवन, उनकी रचनाओं, उनके जप-तप और समाज-उद्धार के लिए किए गए कार्यों का सीधी-सरल भाषा में विवेचन किया गया है|
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