₹200.00
MRPGenre
Print Length
136 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9789380186030
Weight
300 Gram
आज के वैज्ञानिक युग में स्त्री को मुक्त, स्वतंत्र तथा जागरूक होना चाहिए| रूढि़याँ और परंपराएँ उसके विकास के रास्ते में बाधक नहीं होनी चाहिए| परंतु समाज रचना की कुछ असंतुलित धारणाओं के कारण आज भी स्त्री कुछ अवांछनीय बंधनों में बँधी दिखाई देती है| अत: वेदकालीन स्त्रियों के चरित्रों के माध्यम से तत्कालीन समाज-व्यवस्था में स्त्रियों से संबंधित धारणाओं, रूढि़यों तथा परंपराओं का अवलोकन करना कदाचित् उपयोगी सिद्ध होगा| प्रस्तुत पुस्तक में वेदकालीन स्त्रियों के जीवन-चरित्र से स्पष्ट होता है कि वेदकाल में स्त्रियों को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त थी| धर्म, राजनीति, ज्ञान-विज्ञान एवं समाज-व्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में स्त्री को पुरुष के समान महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था| कुछ मामलों में तो उसे पुरुष से अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी| आज के 'स्त्रीमुक्ति आंदोलन' एवं स्त्री कल्याणेच्छुक शासन के लिए ये वेदकालीन स्त्री-चरित्र अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे| वर्तमान हालात में स्त्रियों की समस्याओं के समाधान के लिए स्त्रियों का शिक्षित, संस्कारित तथा जागरूक होना आवश्यक है| आशा है, वेदकालीन स्त्री-चरित्रों के पठन, मनन और चिंतन से स्त्रियों को स्वतंत्रता, सुख-संतोष और सफलता प्राप्त होगी तथा पुरुष वर्ग को सामंजस्य, धैर्य और निर्णय-शक्ति आदि गुण प्राप्त होंगे|
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