₹175.00
MRPGenre
Novels And Short Stories, Music
Print Length
127 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9788173157356
Weight
280 Gram
विश्वविख्यात शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का जन्म डुमराँव (बिहार) के एक संगीतज्ञ घराने में हुआ| अपने चाचा उस्ताद अली बक्श से उन्होंने संगीत की शिक्षा पाई, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के शहनाईवादक थे|
सन् 1937 में कलकत्ते में हुए अखिल भारतीय संगीत समारोह में श्रोताओं को अपनी शहनाई की स्वर-लहरियों से मंत्रमुग्ध करके उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने शहनाई के साज को शास्त्रा्य संगीत के उच्च मंच पर बिठाया| 15 अगस्त, 1947 को देश के प्रथम स्वाधीनता समारोह में और फिर 26 जनवरी, 1950 को प्रथम गणतंत्र दिवस पर दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला उनके सुमधुर शहनाई वादन का साक्षी बना|
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने भारत के अनगिनत संगीत समारोहों के अतिरिक्त इराक, कनाडा, पश्चिम अफ्रीका, अमेरिका, सोवियत संघ, जापान, हांगकांग आदि अनेक देशों में जाकर अपनी शहनाई का जादू बिखेरा| गहरी धार्मिक आस्था के साथ-साथ देशभक्ति की भावना उनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी| अपने अल्लाह के साथ ही वह माँ सरस्वती के भी अनन्य भक्त थे| उन्हें बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी और गंगा से गहरा लगाव था| जब एक अमेरिकन विश्वविद्यालय ने अपने यहाँ स्थायी रूप से विश्वविद्यालय का संगीतज्ञ बनने का प्रस्ताव भेजा तो उस्ताद ने विनम्रतापूर्वक कहा कि वह अमेरिका तभी आ सकते हैं, जब वह अपनी माँ गंगा को भी साथ ला सकें|
उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत-रत्न' देकर उनके हुनर का विशिष्ट सम्मान किया गया|
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