₹300.00
MRPGenre
Print Length
136 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2018
ISBN
9789380183039
Weight
275 Gram
सन् 1890-92 के कालखंड में छोटा नागपुर के अधिकतर वनवासी चर्च के पादरियों के बहकावे में आकर ईसाई बन गए थे| बिरसा मुंडा का परिवार भी इनमें शामिल था, परंतु शीघ्र ही पादरियों की असलियत भाँपकर बिरसा न केवल ईसाई मत त्यागकर हिंदू धर्म में लौट आए, वरन् उन्होंने उस क्षेत्र के अन्य वनवासियों की हिंदू धर्म में वापसी कराई| यही बिरसा मुंडा आगे चलकर एक महान् क्रांतिकारी तथा 'धरती-आबा' (जगत्-पिता) के नाम से विख्यात हुए| बिरसा मुंडा ने अपने समाज के लोगों को पवित्र जीवन की शिक्षा दी| देश को स्वतंत्र कराने के प्रयास में अत्याचारी अंग्रेजों के विरुद्ध अपने समाज के लोगों में क्रांति-ज्वाला धधकाई| आखिर घबराकर अंग्रेज सरकार ने छल-कपट का सहारा लिया| उसने बिरसा को पकड़वाने पर 500 रुपए के इनाम की घोषणा की| अनेक मुंडा सरदारों पर भी इनाम घोषित कर दिए गए| आखिरकार विश्वासघातियों की मुखबिरी से रात में सोते समय बिरसा को बंदी बना लिया गया|
जीवित रहते हुए बिरसा मुंडा ने अपने शौर्यपूर्ण कार्यों से अंग्रेज सरकार की नींद उड़ा दी थी, मृत्यु के बाद भी वह उसके लिए भय का कारण बने रहे| इसलिए सुवर्ण रेखा नदी के घाट पर बिरसा का शव जेल-कर्मचारियों द्वारा कंडों की आग में गुपचुप तरीके से जला दिया गया| इसकी किसी को भनक तक नहीं लगी| प्रस्तुत है एक आदिवासी क्रांतिकारी, देशप्रेमी, समाज-उद्धारक बिरसा मुंडा की पठनीय एवं प्रेरणादायी जीवनी|
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