₹150.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
79 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2020
ISBN
9788177210958
Weight
180 Gram
डॉ. राधाकृष्णन का जन्म एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर, 1888 को तिरुत्तनि, मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था| पारिवारिक निर्धनता के कारण राधाकृष्णन की सारी पढ़ाई छात्रवृत्ति के सहारे हुई| दर्शन उनका प्रिय विषय था| बी.ए. और एम.ए. उन्होंने इसी विषय में किए|
सन् 1909 में एम.ए. करने के बाद राधाकृष्णन मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में सहायक लेक्चरर बन गए| उपनिषद्, भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र आदि हिंदू ग्रंथों में उन्हें महारत हासिल थी| शंकर, रामानुज और माधव पर उनकी टिप्पणियाँ अकाट्य होती थीं| उन्होंने बौद्ध और जैन दर्शन के साथ-साथ पश्चिमी विचारकों प्लेटो, प्लोटिनस, कांट, ब्रैडले और बर्गसन का गहन अध्ययन किया|
सन् 1931 में उन्हें आंध विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया| 1939 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्त हुए| 1946 में यूनेस्को का राजदूत बनाया गया| स्वतंत्रता के बाद उन्हें विश्वविद्यालय शिक्षा का अध्यक्ष बनाया गया| 1948 में वे सोवियत संघ में भारत के राजदूत नियुक्त हुए| 1952 में वे देश के उपराष्ट्रपति बने| 1954 में उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया| वे दो बार देश के उपराष्ट्रपति और 1962 में राष्ट्रपति बनाए गए|
अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण 40 वर्ष उन्होंने शिक्षक के रूप में बिताए| उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है| शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने जो अमूल्य योगदान दिया, वह निश्चय ही अविस्मरणीय रहेगा| उनका जन्म-िदवस 'िशक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है|
प्रस्तुत है उच्च कोटि के दार्शनिक, समाज का सम्यव्Q मार्गदर्शन करनेवाले अनन्य समाज-सुधारक की पठनीय एवं प्रेरणादायक जीवनी|
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