₹200.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
176 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2013
ISBN
8188266353
Weight
335 Gram
आज इस आकस्मिक घटना से हम तीनों के हृदय में ईश्वर के प्रति आस्था बढ़ी| हमें लगा मानो कोई दिव्य शक्ति हमारी ओर हाथ बढ़ाने वाली है| हमें शीघ्र ही विपत्ति से छुटकारा मिलने वाला है| विपत्तियाँ स्थायी नहीं होतीं| जब व्यक्ति सब ओर से निराश हो जाता है, तभी प्रभु उसकी सहायता करता है| कृष्णा का घर में सम्मान था| भाई- भतीजे आदि सभी उसे सम्मान से रखते थे| उसकी माँ तथा भाई राधामोहन उसे ‘कृष्णा’ कहकर पुकारते थे; पर कांता जब छोटी थी, वह उसे ‘कृष्णा दीदी’ न कहकर ‘निन्ना दीदी’ कहा करती थी| और तभी से सब लोग उसे ‘निन्ना’ कहने लगे| कृष्णा पढ़ी-लिखी तो थी ही| उसका स्वभाव बड़ा मिलनसार और भाषा, बोली मधुर थी| उसके होंठों पर हर समय मुसकान फैली रहती थी| सन् 1940 में द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था| उस समय भी ईसाई समाज हिंदू ब्राह्मण वर्ग से पूर्ण बहिष्कृत और उपेक्षित था| गरीब ब्राह्मण सत्ताधारी प्रभु वर्ग के अंग्रेज ईसाइयों को तुच्छ समझते थे| स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहना ही उनका दंभ था| इसी समय में अंग्रेज ईसाई महिला सॉफी और शर्मा के प्रेम संबंध उस युग की एक सामाजिक क्रांतिकारी घटना थी| वास्तव में मानव प्रेम धर्म, जाति, संप्रदाय और संकीर्णता पर नहीं टिका है| लहना सिंह इलाके का हिस्ट्रीशीटर भी था; पर भगवान् ने उसे गला इतना मीठा दिया था कि उसकी आवाज सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे| स्वयं थाने के लोग भी उसे बिठाकर फिल्मी गीत सुना करते थे| नामी चोर होते हुए भी लहना सिंह का अंदाज, चाल-ढाल किसी मस्ताने हीरो से कम न थी| -इसी संग्रह से
0
out of 5