यही तो विडंबना है कि तू सूर्यपुत्र होकर भी स्वयं को सूतपुत्र समझता है, राधेय समझता है; किंतु तू है वास्तव में कौंतेय| तेरी मां कुंती है|'' इतना कहकर वह रहस्यमय हंसी हंसने लगा| थोड़ी देर बाद उसने कुछ संकेतों और कुछ शब्दों के माध्यम से मेरे जन्म की कथा बताई| ''मुझे विस्वास नहीं होता, माधव!'' मैंने कहा| ''मैं समझ रहा था कि तुम विस्वास नहीं कसेगे| किंतु यह भलीभाति जानी कि कृष्ण राजनीतिक हो सकता है, पर अविश्वस्त नहीं| ''उसने अपनी मायत्वी हँसी में घोलकर एक रहस्यमय पहेली मुझे पिलानी चाही, चो सरलता से मेरे गले के नीचे उतर नहीं रही थी| वह अपने प्रभावी स्वर में बोलता गया, ''तुम कुंतीपुत्र हो| यह उतना ही सत्य है जितना यह कहना कि इस समय दिन है, जितना यह कहना कि मनुष्य मरणधर्मा है, जितना यह कहना कि विजय अन्याय की नहीं बल्कि न्याय की होती है|'' ''तो क्या मैं क्षत्रिय हूँ?'' एक संशय मेरे मन में अँगड़ाई लेने लगा, 'आचार्य परशुराम ने भी तो कहा था कि भगवान् भूल नहीं कर सकता| तू कहीं-न- कहीं मूल में क्षत्रिय है| जब लोगों ने सूतपुत्र कहकर मेरा अपमान क्यों किया?' मेरा मनस्ताप मुखरित हुआ, ''जब मैं कुंतीपुत्र था तो संसार ने मुझे सूतपुत्र कहकर मेरी भर्त्सना क्यों की?'' ''यह तुम संसार से पूछो| ''हँसते हुए कृष्ण ने उत्तर दिया| ''और जब संसार मेरी भर्त्सना कर रहा था तब कुंती ने उसका विरोध क्यों नहीं किया?''
Karna Ki Atmakatha (कर्ण की आत्मकथा)
Author: Manu Sharma (मनु शर्मा)
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600.00
Condition: New
Isbn: 9789352661282
Publisher: Prabhat Prakashan
Binding: Hardcover
Language: Hindi
Genre: Novels And Short Stories,Memoir And Biography,
Publishing Date / Year: 2018
No of Pages: 408
Weight: 610 Gram
Total Price: ₹ 600.00
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