क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मैं तुम्हारा मित्र हूँ?'' '' मित्र! हा-हा-हा!'' वह जोर से हँसा, '' मित्रता! कैसी मित्रता? हमारी-तुम्हारी, राजा और रंक की मित्रता ही कैसी?'' '' क्या बात करते हो, द्रुपद!'' '' ठीक कहता हूँ द्रोण! तुम रह गए मूढ़-के- मूढ़! जानते नहीं हो, वय के साथ-साथ मित्रता भी पुरानी पड़ती है, धूमिल होती है और मिट जाती है | हो सकता है, कभी तुम हमारे मित्र रहे हो; पर अब समय की झंझा में तुम्हारी मित्रता उड़ चुकी है | '' '' हमारी मित्रता नहीं वरन् तुम्हारा विवेक उड़ चुका है | और वह भी समय की झंझा में नहीं वरन् तुम्हारे राजमद की झंझा में | पांडु रोगी को जैसे समस्त सृष्टि ही पीतवर्णी दिखाई देती है वैसे ही तुम्हारी मूढ़ता भी दूसरों को मूढ़ ही देखती है | '' '' देखती होगी | '' वह बीच में ही बोल उठा और मुसकराया, '' कहीं कोई दरिद्र किसी राजा को अपना सखा समझे, कोई कायर शूरवीर को अपना मित्र समझे तो मूढ़ नहीं तो और क्या समझा जाएगा?'' ''.. .किंतु मूढ़ समझने की धृष्टता करनेवाले, द्रुपद! राजमद ने तेरी बुद्धि भ्रष्ट कर दी है | तू यह भी नहीं सोच पा रहा है कि तू किससे और कैसी बातें कर रहा है! तुझे अपनी कही हुई बातें भी शायद याद नहीं हैं | तू मेरे पिताजी के शिष्यत्व को तो भुला ही बैठा, अग्निवेश्य के आश्रम में मेरी सेवा भी तूने भुला दी | '' -इसी पुस्तक से
Dron Ki Atmakatha (द्रोण की आत्मकथा)
Author: Manu Sharma (मनु शर्मा)
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400.00
Condition: New
Isbn: 81731553523, 9789386231468
Publisher: Prabhat Prakashan
Binding: Hardcover
Language: Hindi
Genre: Novels And Short Stories,Memoir And Biography,
Publishing Date / Year: 2016
No of Pages: 288
Weight: 470 Gram
Total Price: ₹ 400.00
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