Musahibjoo: Ramgarh Ki Rani (मुसाहिबजू: रामगढ़ की रानी)

By Vrindavan Lal Verma (वृन्दावनलाल वर्मा)

Musahibjoo: Ramgarh Ki Rani (मुसाहिबजू: रामगढ़ की रानी)

By Vrindavan Lal Verma (वृन्दावनलाल वर्मा)

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Specifications

Genre

History

Print Length

188 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2016

ISBN

8173151334

Weight

340 Gram

Description

मुसाहिबजू ने पूछा-' राजा ने कोई नवीन आज्ञा निकाली है?'
कोतवाल ने कहा-' हाँ | '
मुसाहिब ने बिना किसी संयम के तुरंत पूछा-' वह क्या? क्या आज्ञा निकली है?'
' उसी को प्रकट करने अकेला आया हूँ | ' कोतवाल ने मुसाहिबजू की आँख में आख गड़ाकर उत्तर दिया-' मर्जी हुई है कि मेहतरों को और लल्ली को पकड़कर किले के बंदीगृह में बंद कर दो और आपको पकड़कर दरबार में पेश करो |
' मुसाहिबजू ने भी निगाह मिलाए हुए ही कहा-' और यदि ऐसा न हो सके तो?'
कोतवाल बोला-‘ इसके आगे उन्होंने और कुछ मर्जी तो नहीं की है, परंतु इसके आगे जो कुछ होना चाहिए वह मैं समइा गया हूँ | '
मुसाहिबजू-' वह क्या?'
कोतवाल-' वह यह कि अपने ऊपर हथियार चलाकर मैं आत्मघात कर लूँ |
' मुसाहिबजू ने दृढ़तापूर्वक कहा-' जो कुछ भी हो | राजा की आज्ञा का पालन मेरे जीते-जी नहीं हो सकता |'
-इसी उपन्यास से
समर्पण, सेवा और अनुशासन का भाव सैनिक का गुण है | सच्चा सैनिक अपने देश और शासक के लिए अपना सिर दे भी सकता है और किसी का सिर ले भी सकता है | पर यदि शासक के कारण सैनिक के सिर पर ही आ बने तो? इतिहास गवाह है, ऐसे समय में शासकों ने अपने सिर कटा दिए अपने सेवक के मान की खातिर | ऐतिहासिक घटना पर आधारित वर्माजी का यह प्रसिद्ध उपन्यास ऐसे ही सैनिक और शासक की कहानी है |


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