₹150.00
MRPGenre
Novels And Short Stories
Print Length
109 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
8173153639
Weight
245 Gram
यह क्या, बाबूजी, आप खुद ही चले आए! मैं आपको बुलाने जा ही रहा था | '' दिल खोलकर हँस पड़े निखिल हालदार | बोले, '' मैंने सोचा, देखूँ तो सही कि रास्ता ढूँढने में गलती करता हूँ या नहीं | लग रहा है, ईंट-पत्थर ही सबसे भरोसेमंद होते हैं | जरा भी नहीं बदलते | '' फिर वही सेंटीमेंट | नहीं | ऐसे और कितनी देर तक काम चलेगा? उन्हें असली दुनिया में खींचकर न लाने से यही चलता रहेगा | '' बाबूजी, यह है आपकी बहू | '' '' हाँ! ओह! रहने -दो, बहू | वाह! बहुत अच्छा | यह देखो बहू एक और बूढ़े बच्चे का झमेला तुम्हारे कंधे पर आ पड़ा | '' '' झमेला क्यों कहते हैं, बाबूजी? कितनी खुशी हो रही है हम लोगों को |. .कल से. .कल आप आए नहीं | कल तो हम लोग एकदम.. .बाद में इतना बुरा लगा | '' '' मत पूछो, बहू | नसीब का लिखा कल जो झमेला गया, तुम लोग सुनोगे तो ' बाबूजी कितने बुद्धू हैं ' कहकर हँसोगे | कल गलत ट्रेन पर चढ़ गया था | इसी से यह गड़बड़ी हुई | '' '' गलत ट्रेन में!'' '' वही तो | नसीब में भुगतना लिखा था | स्टेशन पहुँचा तो... '' -इसी पुस्तक से इस उपन्यास की नायिका सुचरिता, जो नायक निखिल की पत्नी है, एक स्वाभिमानी नारी है | वह अपने भाग्य की विडंबना को, अपने पति के गलत निर्णयों को जीवन भर सिर उठाकर झेलती है, पर अंत में उसका साहस साथ छोड़ जाता है; अपने पति की एक अंतिम गलती के लिए वह उसे क्षमा नहीं कर सकी और जीवन के आगे हार गई | प्रसिद्ध बँगला उपन्यासकार आशापूर्णा देवी की सशक्त लेखनी से निःसृत अत्यंत हृदयस्पर्शी कृति, जो पाठकों के मानस-पटल पर वर्षो छाई रहेगी |
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