Logo

  •  support@imusti.com

Pratyagat (प्रत्यागत)

Price: ₹ 300.00

Condition: New

Isbn: 8173152489

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Novels And Short Stories,

Publishing Date / Year: 2011

No of Pages: 228

Weight: 375 Gram

Total Price: 300.00

    0       VIEW CART

नवलबिहारी ने वहीं खड़े-खड़े कहा, ' इन पाजी लौंडों की यह हिम्मत! धर्म को गारत किया, अब अपने बडे-बूढ़ों के अपमान पर कमर कसी है | ' पंचपात्र छीनने के लिए नवलबिहारी मंगल के पास ऐसे स्थान पर आए जहाँ सोमवती या फूलरानी से उनकी मुठभेड़ नहीं हो सकती थी | मंगल से बोले, ' अपना नाश किया था, सो उसका तुमको यह प्रायश्‍च‌ित्त करना पड़ा; अब सारे समाज का नाश करके कौन सा प्रायश्‍च‌ित्त करोगे?' मंगल ने कहा, ‘तुम्हारे सरीखे संसार डुबोइयों की अकल अगर मैंने ठीक कर दी तो हमारे समाज का बेड़ा पार है | ' एक युवक ने बड़ी बेतकल्लुफी के साथ कहा. ' पंडितजी, क्यों चाँय-चाँय मचाए हुए हो? भाई के हाथ का चरणामृत बँट चुका, अब जरा अपनी बहिन के हाथ का भी पी लेने दो | ' नवलबिहारी की आँखों में खून आ गया | उनकी सहज सरल मुसकराहट तो जान पड़ता था मानो दीर्घकाल से लुप्‍त हो गई हो | आकृति बहुत भयानक हो उठी | लखपत ने उनको पकड़कर कहा, ' पंडितजी, यहाँ से चलिए | ये लोग बलवा करने के लिए आमादा हैं | मंदिर अपवित्र हो गया है | कल इसको शुद्ध करावेंगे | ' एक लड़का ठहाका मारकर बोला, ' वाह रे भैया खूसट!' पं. नवलबिहारी आग उगलनेवाली दृष्‍ट‌ि से इन सब पूजकों की ओर देखते जाते थे और उनको लखपत समेत उनके दो-तीन इष्‍ट मित्र बाहर घसीटे लिये जाते थे | -इसी पुस्तक से