₹250.00
MRPGenre
Language
Print Length
184 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9789380183640
Weight
345 Gram
मनुष्यता का क्षय सूर्यबाला के रचना-संसार की मुख्य चिंता है और दुर्लभ मानुषगंध को सहज लेना उसका सहज स्वभाव है|
किसी 'विमर्श’ , 'आंदोलन’ , 'शिविर’ की जकडऩ से मुक्त उनकी सर्जना का सही मूल्यांकन पूर्वनिश्चित और पूर्वग्रह-प्रेरित समीक्षा-दृष्टि के वश की बात नहीं है| यह कृति सूर्यबाला की रचनाशीलता के स्रोत, सोच, सरोकार और संप्रेषण-कौशल पर खुले मन से विचार करनेवाले सहृदय समीक्षकों का समवेत प्रयास है| बिना किसी हड़बड़ी या अतिरंजना के रचनाओं के 'मर्म’ और 'विजन’ को समझने का विवेक इन मंतव्यों के अतिरिक्त दीप्ति दे सका है| ध्यानाकर्षक है कि समीक्षकों की दृष्टि रचनाओं की अंतर्वस्तु तक सीमित नहीं है| इसमें वस्तु और अभिव्यंजना का संश्लिष्ट अनुशीलन जितना वस्तुनिष्ठ है, उतना ही प्रासंगिक भी|
इस दौर की महत्त्वपूर्ण लेखिका के वैशिष्टय को उद्घाटित करने में सक्षम एक सार्थक समीक्षा-संवाद है यह कृति|
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