₹175.00
MRPGenre
Other
Print Length
136 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
9789380186207
Weight
280 Gram
अखंड चेतना का पर्याय है भारत| यह मात्र एक भौगोलिक इकाई नहीं, जिसे नदियों, पहाड़ों, मैदानों या समुद्र-तटों से परिभाषित किया जा सके| यह तो संस्कृति की सनातन यात्रा का यायावर है| इसे हम आलोक का महापुंज भी कह सकते हैं| ‘भा’ का अर्थ प्रकाश ही तो होता है| भा+रत यानी प्रकाश में रत, प्रकाश में लवलीन, या यों कहें कि प्रकाश को अपने में समाया हुआ देश| विश्व में अनेक देश हैं-बड़े भी, छोटे भी; धनवान् भी, गरीब भी; साम्राज्यवादी भी, शोषित भी; सामंती भी और लोकतांत्रिक भी| फिर भारत की ऐसी क्या विशेषता है, जिसे हम एक अलग पहचान दे सकें? यह पहचान है आत्मप्रकाश के चिरंतन वैभव की| यह पहचान है असत्य से सत्य की ओर ले जानेवाली; अंधकार से आलोक की ओर ले जानेवाली तथा नश्वरता से अमरता की ओर ले जानेवाली उसकी अटूट सांस्कृतिक परंपरा की| शताब्दियाँ बीत गईं, पर यह पहचान अक्षुण्ण रही| परिस्थितियों के झंझावात इसे कभी भी धूमिल नहीं कर सके, न कभी कर सकेंगे|
हमारे पर्वों-त्योहारों में, हमारे पूजा और अनुष्ठानों में, हमारे लौकिक रीति-रिवाजों में, हमारे हर्ष और शोक में या यों कहिए कि हमारे संपूर्ण लोक-व्यवहार में इसी निधि की, यानी भारतीयता की अखंड छाप बनी रही| तभी तो ‘यूनान, मिस्र, रोमाँ, सब मिट गए जहाँ से/कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी|’ भारत और भारतीयता को विस्तृत आलोक में समझानेवाली एक ज्ञानपरक पुस्तक|
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